आगरा सेंट्रल जेल में बंद 31 उम्र कैदियों ने शीर्ष कोर्ट में दाखिल की अवमानना याचिका
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नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश की आगरा सेंट्रल जेल में उम्रकैद काट रहे 31 कैदियों ने सुप्रीम कोर्ट में अवमानना याचिका दाखिल कर राज्य सरकार पर कोर्ट के आदेश का पालन न करने का आरोप लगाया है।

अवमानना याचिका में कहा गया कि कोर्ट ने गत चार मई को आदेश दिया था कि राज्य सरकार कैदियों की समय पूर्व रिहाई की एक अगस्त, 2018 की नीति के अनुसार चार सप्ताह के भीतर याचिकाकर्ता कैदियों की रिहाई पर विचार कर निर्णय ले, लेकिन अभी तक इस संबंध में कुछ भी नहीं हुआ। यह शीर्ष कोर्ट के आदेश की अवहेलना है। याचिका में मांग की गई कि जानबूझकर कोर्ट के आदेश की अवहेलना करने पर अधिकारियों के खिलाफ अवमानना कार्यवाही शुरू की जाए।

याचिका में उत्तर प्रदेश के अपर मुख्य सचिव, गृह अवनीश अवस्थी, डीजी कारागार आनंद कुमार और सेंट्रल जेल, आगरा के वरिष्ठ जेल अधीक्षक वीके सिंह को प्रतिवादी बनाया गया है। कैदियों ने वकील ऋषि मल्होत्रा के जरिये दाखिल की गई याचिका में कहा कि गत चार मई के आदेश में शीर्ष कोर्ट ने कहा था कि सभी याचिकाकर्ता 16 से 24 साल की वास्तविक जेल भुगत चुके हैं और रिमिशन को मिलाकर 20 से 31 साल सजा काट चुके हैं।

उस फैसले में कोर्ट ने कैदियों की समय पूर्व रिहाई की उत्तर प्रदेश सरकार की एक अगस्त, 2018 की नीति का भी जिक्र किया जिसके मुताबिक जो कैदी 16 वर्ष वास्तविक कैद भुगत चुके हैं और रिमिशन मिलाकर कुल 20 साल की सजा हो जाती है तो उनकी समय पूर्व रिहाई पर विचार किया जा सकता है।

शीर्ष कोर्ट ने उस फैसले में राज्य सरकार को आदेश दिया था कि वह इस नीति के तहत चार सप्ताह में याचिकाकर्ता कैदियों की रिहाई के बारे में विचार कर निर्णय ले। प्रदेश सरकार की ओर से पेश हुए वकील ने भी कोर्ट को मामले पर विचार करने का भरोसा दिया था, लेकिन आज तक इस बारे में कुछ नहीं हुआ।

कोर्ट के आदेश के बावजूद वे लोग सजा काट रहे हैं जो अनुच्छेद 21 में मिले उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है। याचिका में कहा गया कि जब चार सप्ताह में कुछ नहीं हुआ तो याचिकाकर्ताओं ने अपने वकील के जरिये सात जून को लीगल नोटिस भेजा और तीन दिन में उनकी रिहाई के बारे में निर्णय लेने को कहा, लेकिन तब भी कुछ नहीं हुआ।

यह कोर्ट के आदेश की जानबूझकर अवहेलना है। याचिका में कोर्ट आदेश की अवहेलना पर अवमानना कार्यवाही शुरू करने और प्रदेश सरकार की 2018 की नीति के मुताबिक याचिकाकर्ताओं की समय पूर्व रिहाई का आदेश देने की मांग की गई। 

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