प्रयागराज : गंगा किनारे शव दफनाने की परंपरा पर पिछले दिनों जो विवाद खड़ा किया गया था, शुक्रवार को इलाहाबाद हाई कोर्ट का इस मामले मेंे महत्वपूर्ण आदेश आया। कोर्ट ने कहा कि कुछ जातियों में गंगा किनारे शव दफन करने की परंपरा है। इसी के साथ कोर्ट ने प्रयागराज में गंगा किनारे शवों को दफनाने से रोकने और दफनाए गए पार्थिव शरीरों का दाह संस्कार करने की याचिका निस्तारित कर दी।
याची ने नहीं किया शोध: हाई कोर्ट ने जनहित याचिका पर हस्तक्षेप से इन्कार करते हुए कहा कि याची द्वारा गंगा किनारे निवास करने वाले लोगों के अंतिम संस्कार की परिपाटी व चलन को लेकर कोई शोध न करने के कारण याचिका खारिज की जाती है।
याची चाहे तो पर्याप्त शोध के बाद नए सिरे से याचिका दाखिल कर सकता है। पड़ताल में सामने आई थी दफनाने की परंपरा: कोर्ट का यह आदेश ऐसे समय आया है जब गंगा किनारे दफन शवों की फोटो और वीडियो को इंटरनेट मीडिया पर वायरल कर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश की छवि को खराब करने की कोशिश की गई थी।
साथ ही, दफन शवों को लेकर यह भी कहा गया कि ये सभी मौतें कोरोना से हुई, जिनका दाह संस्कार न हो पाने के कारण उन्हें दफन करना पड़ा। परंपरा की बात को नजरंदाज कर दफन शवों की तस्वीरों के माध्यम से राज्य सरकार की व्यवस्थाओं पर भी सवाल उठाए गए थे।कानपुर में तो हिंदुओं का एक कब्रिस्तान भी है।
वीडियो कांफ्रेंसिंग से हुई सुनवाई: याचिका की सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा कि याची गंगा किनारे विभिन्न समुदायों में अंतिम संस्कार को लेकर परंपराओं और रीति-रिवाज पर शोध व अध्ययन करे। मुख्य न्यायमूर्ति संजय यादव व न्यायमूर्ति प्रकाश पाडिया की पीठ ने याची प्रणवेश की जनहित याचिका पर वीडियो कांफ्रेंसिंग से सुनवाई की।
सुनवाई में सरकार की तरफ से अपर महाधिवक्ता मनीष गोयल ने बहस की। याचिका में मांग की गई थी कि बड़ी संख्या में गंगा के किनारे दफनाए गए शवों को निकालकर उनका दाह संस्कार किया जाए। इसके साथ ही, गंगा के किनारे शवों को दफनाने से रोका जाए। कोर्ट ने इस प्रकार का कोई आदेश देने से इन्कार कर दिया।