नई दिल्ली। भारतीय टेस्ट क्रिकेट टीम इस समय इंग्लैंड दौरे पर हैं जहां वह शुक्रवार से न्यूजीलैंड के खिलाफ साउथैंप्टन में विश्व टेस्ट चैंपियनशिप (डब्ल्यूटीसी) का फाइनल खेलेगी और उसके बाद इंग्लैंड के खिलाफ पांच टेस्ट मैचों की सीरीज खेलेगी। इंग्लैंड में मौसम में उतार-चढ़ाव देखने को मिलता है और गेंद स्विंग करती है।
ऐसे में सलामी बल्लेबाजों की भूमिका अहम हो जाती है। इंग्लैंड में भारतीय टीम को आने वाली चुनौतियों का सामना कैसे करना चाहिए, इसके बारे पूर्व कप्तान और दिग्गज सलामी बल्लेबाज सुनील गावस्कर से बेहतर शायद ही कोई और बता सके।
मौजूदा दौरे व अन्य मुद्दों को लेकर सुनील गावस्कर से अभिषेक त्रिपाठी ने खास बातचीत की। पेश हैं प्रमुख अंश :- -डब्ल्यूटीसी को टी-20 क्रिकेट के जमाने में टेस्ट क्रिकेट की ब्रांडिंग के तौर पर कैसे देखते हैं? -डब्ल्यूटीसी अच्छा विचार है, क्योंकि यह द्विपक्षीय टेस्ट मैचों को महत्व देता है,
जहां जीतने से आपको फाइनल के लिए क्वालीफाई करने के लिए अंक मिल सकते हैं। हालांकि, डब्ल्यूटीसी के लिए वास्तव में प्रत्येक टेस्ट खेलने वाले देश को कम से कम एक बार एक-दूसरे के खिलाफ खेलना चाहिए। इसका मतलब चार साल का चक्र है तो ऐसा ही होना चाहिए।
यह कहूंगा कि भारत फाइनल में पहुंचने का दावेदार था, क्योंकि उसने अधिकतर टेस्ट टीमों को घर और बाहर दोनों जगह हराया था। -1983 में भारत ने विश्व कप क्रिकेट के मक्का लार्ड्स में जीता था। अब भारत के पास इंग्लैंड में ही टेस्ट क्रिकेट की सबसे बड़ी ट्राफी जीतने का मौका है तो इसे लेकर कितना उत्साहित हैं और इसे कैसे देखते हैं?
–लार्ड्स में विश्व कप जीतना ऐतिहासिक पल था। वहां पर कोई भी मैच जीतना महत्वपूर्ण होता है।
पिछले कुछ वर्षों में भारतीय क्रिकेट टीम जिस तरह से खेली है, वह सभी भारतीय क्रिकेट प्रेमियों के लिए सबसे ज्यादा उत्साहजनक और रोमांचकारी रहा है इसलिए वे अब डब्ल्यूटीसी जीतने की उम्मीद कर रहे हैं। पहले फाइनल लार्ड्स में ही होना था लेकिन अब साउथैंप्टन में होगा। भारत इस खिताब को जीतने का प्रबल दावेदार है।
-भारत के सलामी बल्लेबाजों को डब्ल्यूटीसी फाइनल और इंग्लैंड के दौरे पर इस बार हरी पिचों की अग्निपरीक्षा को कैसे पार करना होगा?
–अगर साउथैंप्टन में मौसम गर्म रहता है और धूप निकलती है तो गेंद को ज्यादा हिलना नहीं चाहिए। बल्लेबाजों के लिए शाट चयन महत्वपूर्ण होता है, इसलिए उन्हें इसके बारे में सतर्क रहना होगा। जब तक कि वे अच्छी तरह से सेट ना हो जाएं तब तक रिस्की शॉट नहीं खेलें। बाहर जाती गेंदों को भी छूने की जरूरत नहीं है। आप अगर कोहली की जगह कप्तान होते तो किस सलामी जोड़ी के साथ जाते?
मैं पिछली सीरीज में ओपनिंग करने वाली जोड़ी पर टिका रहूंगा, इसलिए वे रोहित शर्मा और शुभमन गिल होंगे। दोनों ने ही हाल में अच्छा प्रदर्शन किया है। उनमें बदलाव की कोई जरूरत समझ में नहीं आती है। -भारत की तेज गेंदबाजी विश्व में सर्वश्रेष्ठ मानी जा रही है, इस चीज को इंग्लैंड की सरजमीं पर टीम इंडिया के लिए कितना फायदेमंद देखते हैं?
भारत का नई गेंद का आक्रमण शानदार है, लेकिन ऐसा ही न्यूजीलैंड का आक्रमण भी है, इसलिए यह वास्तव में दिलचस्प मुकाबला होना चाहिए। दोनों ही देशों के गेंदबाज धारदार हैं। हमारे पास हर क्वालिटी के गेंदबाज हैं।
न्यूजीलैंड के पास भी इस मामले में विविधता है। -इंग्लैंड आपकी बल्लेबाजी को काफी रास आया है, जहां गेंदबाज हावी होते हैं वहां पर आपने बल्ले से कमाल किया है। ऐसा क्या था कि आपको बाकी देशों के बजाय इंग्लैंड ज्यादा पसंद था?
इंग्लैंड में बदलते मौसम की स्थिति सबसे बड़ी चुनौती है, क्योंकि वहां आपको एक ही दिन में चारों मौसम मिल सकते हैं और इसलिए आपका शरीर उस पर कैसे प्रतिक्रिया करता है, यह महत्वपूर्ण है। इंग्लैंड में गेंद हवा के साथ-साथ पिच के बाहर भी अधिक स्विंग करती है और इसलिए बल्लेबाजी एक बड़ी चुनौती है।
आपने अपने करियर का पहला इंग्लैंड दौरा साल 1971 में किया था, जिसमें आपने ओल्ड ट्रेफर्ड में दूसरे मैच में 57 रनों की पारी खेली थी। इस पारी को आपने जीवन बदलने वाली बताया था, इसमें क्या खास था और इसके बाद गावस्कर कैसे बदले? –हां, यह टेस्ट क्रिकेट में मेरी सर्वश्रेष्ठ पारी है।
पिच में बहुत सारी घास थी और इसे बाकी आउटफील्ड से अलग करके देखना मुश्किल था। साथ ही हल्की बूंदाबांदी हुई थी, स्थितियां ऐसी थीं जहां अंपायर खिलाड़ियों को नहीं उतारते। तेज हवा चल रही थी जिससे मौसम बेहद सर्द हो गया था।
जॉन प्राइस ने ऐसे में सबसे तेज स्पैल में से एक फेंका, जिसका सामना मैंने किया। यह भी याद रखें कि उस समय मैं सिर्फ 21 साल का था, इसलिए मेरे रिफ्लैक्स भी बाद की तुलना में काफी तेज थे। फिर भी वह अपनी गति और उछाल से गेंद को बल्ले के जोड़ से टकरा रहा था। -1971 में भारत पहली बार इंग्लैंड में सीरीज जीत के वापस आया, यह भारतीय क्रिकेट टीम के लिए कितनी बड़ी बात थी?
पहली बार विदेश में जीतना हमेशा बेहद रोमांचक होता है और इंग्लैंड को इंग्लैंड में हराना शानदार था। वेस्टइंडीज में 700 से अधिक रन बनाने के बाद आपके बल्ले से इंग्लैंड में 1971 के पहले दौरे में 144 रन ही निकले, तो विंडीज के बाद इंग्लैंड में क्या बदल गया था?
पिचें अलग तरह की थीं, मौसम अलग तरह का था, गेंदबाज गेंद को काफी अच्छी तरह से मूव करा रहे थे, इसलिए वहां रन बनाना मुश्किल था। इंग्लैंड खेलने के लिए अलग जगह है। वहां पर परिस्थितियां बदलती रहती हैं।
इसके बाद साल 1974 में आप दोबारा इंग्लैंड खेलने गए और पहले ही मैच में मैनचेस्टर में आपने 101 रन की पारी खेली और रन आउट हुए।
ऐसा क्या बदलाव आप खुद की बल्लेबाजी में बतौर ओपनर लाए और दूसरे दौरे में आपने जाते ही धमाल मचा दिया। इंग्लैंड में बतौर सलामी बल्लेबाज आपने क्या सफलता का मंत्र निकाला था?
वह शतक मेरा सर्वश्रेष्ठ टेस्ट शतक है, क्योंकि उसने मुझे फिर से खुद पर विश्वास दिलाया। वह शतक मेरी पहली वेस्टइंडीज सीरीज के तीन साल बाद आया था, इसलिए मुझे अपनी क्षमता पर संदेह होने लगा था।
साल 1971 के दौरे से सीखने के बाद मैं गेंद को देर से और अपने शरीर के करीब खेलने की कोशिश कर रहा था और यह काफी सकारात्मक था।
साल 1971 के ही दौरे में आपके स्वेटर ना पहनने वाला किस्सा काफी चर्चा में रहा था। आपने साल 1974 में भारत की इंग्लैंड दौरे में बुरी हार के बाद कहा भी था कि सभी खिलाड़ी तीन से चार स्वेटर पहने थे और स्लिप में खड़े होकर जेब में हाथ डाले रहते थे।