लखनऊ : उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और राजस्थान के पूर्व राज्यपाल कल्याण सिंह का लंबी बीमारी के बाद शनिवार को निधन हो गया। वह राममंदिर आंदोलन के प्रमुख नायकों में शामिल रहे। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ व अन्य लोगों ने उनके निधन पर गहरा शोक जताया है। कल्याण सिंह को चार जुलाई को संजय गांधी पीजीआइ के क्रिटिकल केयर मेडिसिन कीआइसीयू में गंभीर अवस्था में भर्ती किया गया था। लंबी बीमारी और शरीर के कई अंगों के धीरे-धीरे फेल होने के कारण शनिवार रात 9:30 बजे उन्होंने अंतिम सांस ली।
भर्ती रहने के दौरान पीएम नरेन्द्र मोदी ने हर दिन उनके स्वास्थ्य का हाल लिया और उनके निर्देश पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ लगातार निगरानी करते रहे। भाजपा के संस्थापक सदस्यों में थे कल्याण भारतीय जनता पार्टी के संस्थापक सदस्यों में से एक कल्याण सिंह का पार्टी के साथ ही भारतीय राजनीति में कद काफी विशाल था। कल्याण सिंह का जन्म छह जनवरी, 1932 को उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में हुआ था। पिता का नाम तेजपाल लोधी और माता का नाम सीता देवी था।
कल्याण सिंह ने दो बार उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री पद संभाला। अयोध्या में विवादित ढांचा के विध्वंस के समय वही मुख्यमंत्री थे। अतरौली विधानसभा से जीतने के साथ ही वह बुलंदशहर तथा एटा से लोकसभा सदस्य भी रहे। राजस्थान तथा हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल रहे। राज्यपाल के रूप में अपना कार्यकाल समाप्त करने के बाद उन्होंने लखनऊ में आकर एक बार फिर से भाजपा की सदस्यता ग्रहण की। ढांचा ध्वंस के बाद दे दिया था त्यागपत्र कल्याण सिंह पहली बार 1991 में और दूसरी बार 1997 में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। उनके पहले मुख्यमंत्री कार्यकाल के दौरान ही विवादित ढांचा ध्वंस की घटना घटी थी। घटना की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए उन्होंने छह दिसंबर, 1992 को मुख्यमंत्री पद से त्यागपत्र दे दिया। 1993 में बने नेता विपक्ष कल्याण सिंह 1993 में अतरौली तथा कासगंज से विधायक निर्वाचित हुए।
इन चुनावों में भाजपा सबसे बड़े दल के रूप में उभरी, लेकिन सरकार न बनने पर कल्याण सिंह विधानसभा में नेता विपक्ष के पद पर बैठे। इसके बाद भाजपा ने बसपा के साथ गठबंधन करके उत्तर प्रदेश में सरकार बनाई। तब कल्याण सिंह सितंबर 1997 से नवंबर 1999 में एक बार फिर मुख्यमंत्री बने। गठबंधन की सरकार में मायावती पहले मुख्यमंत्री बनीं, लेकिन जब भाजपा की बारी आई तो उन्होंने समर्थन वापस ले लिया। बसपा ने 21 अक्टूबर, 1997 को कल्याण सिंह सरकार से समर्थन वापस ले लिया।
भाजपा की सत्ता में वापसी बसपा की चाल भांप चुके कल्याण सिंह पहले से ही कांग्रेस विधायक नरेश अग्रवाल के संपर्क में थे और उन्होंने नरेश अग्रवाल के साथ आए विधायकों की पार्टी लोकतांत्रिक कांग्रेस का गठन कराया 21 विधायकों का समर्थन दिलाया। नरेश अग्रवाल को सरकार में शामिल करके उनको ऊर्जा विभाग का मंत्री भी बना दिया। निर्दल लड़कर भी जीते थे लोकसभा चुनाव कल्याण सिंह ने किसी बात पर खिन्न होकर दिसंबर, 1999 में भाजपा छोड़ दी। उन्होंने अपनी पार्टी बना ली और मुलायम सिंह यादव के साथ भी जुड़ गए। करीब पांच वर्ष बाद जनवरी 2003 में उनकी भाजपा में वापसी हो गई। भाजपा ने 2004 लोकसभा चुनाव में उनको बुलंदशहर से प्रत्याशी बनाया और उन्होंने जीत दर्ज की। इसके बाद उन्होंने लोकसभा चुनाव 2009 से पहले भाजपा को छोड़ दिया। वह एटा से 2009 का लोकसभा चुनाव निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में लड़े और जीत दर्ज की।