क्यों नहीं किया जाता भोग प्रसाद और ब्रत में प्याज-लहसुन का प्रयोग, जानें इस रोचक तथ्य को

धर्म । प्‍याज-लहसुन सब्जियों में काफी महत्व रखते हैं। ज्यादातर लोग अपने भोजन में प्याज लहसुन का उपयोग करते हैं। लेकिन भगवान के भोग में प्याज लहसुन का उपयोग वर्जित माना जाता है। आखिर क्या कारण है कि मानव स्वास्थ्य के लिए उपयोगी इन दोनों चीजों को धार्मिक कार्यों से दूर रखा जाता है। इतना ही नहीं कई संत और महात्मा भी आध्यात्मिक उन्नति के लिए प्याज लहसुन का त्याग कर देते हैं।
आइए ! आज हम आपको बताते हैं कि भगवान के लिए बनाए जाने वाले भोग में प्‍याज-लहसुन का प्रयोग क्‍यों नहीं किया जाता। प्‍याज-लहसुन गुणों की खान है, लेकिन इसके बाद भी ब्रत के लिए बनने वाले किसी भी प्रकार के भोजन में प्‍याज-लहसुन का प्रयोग नहीं किया जाता है। इसके पीछे एक पौराणिक कथा है, जिसका संबंध समुद्र मंथन से है।
इसका संबंध समुद्र मंथन से जुड़ा है। समुद्र मंथन से जब अमृत निकला था तो अमृत पीने के लिए देवताओं व राक्षसों में छीना-झपटी होने लगी। तब मोहिनी रूप धर भगवान विष्णु ने देवताओं को अमृतपान कराने के उद्देश्य से राक्षसों को भ्रमित कर उन्हें मदिरा बांटना शुरू कर दिया।

राहु नामक एक राक्षस को जब मोहिनी पर संदेह हुआ तो वह चुपके से देवताओं की पंक्ति में वेश बदलकर बैठ गया। अमृत बांटते-बांटते मोहिनी के रूप में भगवान विष्णु भी उस राक्षस को नहीं पहचान पाए और उसे भी अमृतपान करवा दिया।

मगर सूर्य और चंद्रद्रेव ने तत्‍काल ही उस राक्षस को पहचान लिया और मोहिनी के रूप में अमृत बांट रहे भगवान विष्‍णु को राक्षस की इस चाल के बारे में बताया। भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से उस राक्षस का सिर धड़ से अलग कर दिया। सिर कटते ही अमृत की कुछ बूंदें उस राक्षस के मुंह से रक्त के साथ नीचे जमीन में आ गिरीं, जिनसे प्याज और लहसुन की उत्पत्ति हुई।

अमृत से पैदा होने के कारण प्याज और लहसुन रोगनाशक व जीवनदायिनी है। परंतु राक्षसी रक्त के मिश्रण के कारण इसमें राक्षसी गुणों का समावेश हो गया है। तामसी होने से यह उत्तेजना, क्रोध, हिंसा अशांति व पाप में वृद्धि करते है। इसलिए ब्रत के खाने में या फिर भगवान के भोग में प्‍याज-लहसुन का प्रयोग नहीं किया जाता।

इसे राक्षसी भोजन माना गया है। रोगनाशक व जीवनदायिनी होने के बाद भी यह पाप को बढ़ाता है और बुद्धि को भ्रष्ट कर अशांति को जन्म देता है। इसलिए प्याज और लहसुन को अपवित्र मानकर इनका धार्मिक कार्यों में प्रयोग वर्जित है।

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