कानूनी कार्रवाई करना आत्महत्या के लिए उकसाने के बराबर नहीं है: दिल्ली हाई कोर्ट

नई दिल्ली : कानूनी नोटिस भेजना और आपराधिक शिकायत करना आत्महत्या के लिए उकसाने का कारण नहीं हो सकता, भले ही सुसाइड नोट में इसका जिक्र हो। आत्महत्या के एक मामले में दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए मंगलवार को दिल्ली हाई कोर्ट ने यह व्यवस्था दी।

हाई कोर्ट ने इस मामले में निचली अदालत के आदेश को एक तरफ करते हुए कहा कि उकसाने से तात्पर्य कृत्य करने के लिए व्यक्ति को मानसिक रूप से प्रेरित करने या उसके लिए जानबूझकर मदद करने से है। दिल्ली के आनंद प्रभात इलाके में नौ दिसंबर 2014 को अरविंद सिंह ग्रेवाल ने आत्महत्या की थी। पुलिस को उनके कब्जे से एक सुसाइड नोट मिला था।

जिसमें लिखा था कि अमेरिका में रहने वाले अतुल कुमार के द्वारा कानूनी नोटिस भेजे जाने और मुकदमा दर्ज कराने की वजह से आत्महत्या जैसा कदम उठाना पड़ा। इस मामले में निचली अदालत अतुल कुमार के खिलाफ आदेश हुआ था। जिसे चुनौती देते हुए अतुल कुमार ने हाई कोर्ट में याचिका दायर कर राहत की मांग की थी।

इस याचिका पर सुनवाई कर रही न्यायमूर्ति मनोज कुमार ओहरी की पीठ के समक्ष अतुल कुमार के वकील ने पक्ष रखा कि उनके मुवक्किल विंटेज मोटरसाइकिल खरीदने में रुचि रखते हैं। वह एक पोर्टल के जरिये मई 2011 में विंटेज मोटरसाइकिल विक्रेता अरविंद सिंह ग्रेवाल के संपर्क में आए थे।

उनके मुवक्किल ने एक वर्ष के अंतराल की बातचीत के दौरान अरविंद सिंह ग्रेवाल को मोटरसाइकिल की पूरी कीमत अदा कर दी थी। लेकिन उन्हें मोटरसाइकिल नहीं सौंपी गई थी। जिस पर उन्होंने भारत आने पर मोटरसाइकिल विक्रेता पहले कानूनी नोटिस दिया, फिर मुकदमा दर्ज कराया गया। यह कानूनी सलाह पर उठाया गया कदम था।

जबकि, प्रतिवादी की तरफ से पैरवी कर रहे वकील ने इस याचिका का विरोध करते हुए सुसाइड नोट पर जोर दिया। दोनों पक्षों को सुनने के बाद पीठ ने कहा कि मोटरसाइकिल विक्रेता ने खुद प्रताड़ित महसूस किया, लेकिन इस मामले में याचिकाकर्ता के कदम ने उसको आत्महत्या के लिए नहीं उकसाया। 

Share this with Your friends :

Share on whatsapp
Share on facebook
Share on twitter