काबुल : अफगानिस्तान की राजधानी काबुल में कारते परवन गुरुद्वारे में सिख समुदाय के 260 से अधिक लोगों ने शरण ली है। ये लोग तनावग्रस्त देश से निकलने के लिए मदद चाहते हैं।
अमेरिका के एक सिख संगठन ‘यूनाइटेड सिख’ ने एक बयान में कहा, ‘काबुल के कारते परवन गुरुद्वारे में इन अफगान नागरिकों में महिलाएं और 50 से अधिक बच्चे भी शामिल हैं। इनमें तीन नवजात भी शामिल हैं, जिनमें से एक का जन्म शनिवार को ही हुआ है।’
तालिबान के अफगानिस्तान पर काबिज होने के बाद से केवल भारत ने अफगानिस्तान के सिख समुदाय के लोगों को वहां से निकलने में मदद की है। ‘यूनाइटेड सिख’ ने कहा, ‘हम अमेरिका, कनाडा, पाकिस्तान, आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, ताजिकिस्तान, ईरान और ब्रिटेन सहित कई देशों की सरकारों से इस संबंध में बात कर रहे हैं।
हम अंतरराष्ट्रीय सहायता एजेंसियों और गैर सरकारी संगठनों से भी बात कर रहे हैं, जो अफगानिस्तान में फंसे लोगों को वहां से निकालने में मदद देने का प्रयास कर रही हैं। इसके अलावा, अफगानिस्तान पर जमीनी स्तर पर इस संबंध में काम कर रही कंपनियों के साथ भी हम संपर्क में हैं।’
जांच चौकियां बाहर निकालने में बाधक ‘यूनाइटेड सिख’ के अनुसार, इस बचाव कार्य की सबसे बड़ी चुनौती कारते परवन गुरुद्वारे से काबुल के इंटरनेशनल एयरपोर्ट तक जाने का दस किलोमीटर लंबा रास्ता है, जिस मार्ग पर कई जांच चौकियां स्थापित की गई हैं। अफगानिस्तान के अल्पसंख्यक समुदाय के कुछ लोगों ने पिछले हफ्ते वहां से निकलने की कोशिश की थी जो असफल रही। गुरुद्वारे में शरण लेने वाले जलालाबाद के सुरबीर सिंह ने कहा, ‘हम एयरपोर्ट जाने को तैयार हैं, लेकिन हमें काबुल से जाने वाली उड़ानों के रद होने का डर है। हमारे पास महिलाओं, बच्चों, बुजुर्गों और शिशुओं को देश से बाहर निकालने का यही एकमात्र मौका है। एक बार जब मौजूदा अधिकारियों ने पूरे देश पर कब्जा कर लिया तो वह हमारे समुदाय का अंत होगा।’
डर रहे अल्पसंख्यक समुदाय अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के बाद से ही स्थितियां काफी बदल चुकी हैं। बड़ी संख्या में लोगों को तालिबान की पुरानी शासन पद्धति के लौटने का डर है।
तालिबान का देश के जमीनी बार्डर क्रासिंग पर कब्जा हो चुका है। ऐसे में लोगों के पास काबुल एयरपोर्ट के जरिये ही बाहर निकलने का एकमात्र रास्ता है। तालिबान की वापसी की वजह से सबसे ज्यादा डर वहां रहने वाले अल्पसंख्यक समुदाय के भीतर है। इसमें हिंदू और सिखों की संख्या शामिल है। ये लोग देश छोड़ने के लिए काफी जद्दोजहद कर रहे हैं। भारत ने अफगान सिखों को बाहर निकलने में सहायता भी की है