बहादुरगढ़ (झज्जर) : तीन कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली की सीमाओं पर चल रहे आंदोलन को अब नौ महीने पूरे होने जा रहे हैं। 26 अगस्त के बाद यह आंदोलन दसवें महीने में प्रवेश कर जाएगा।
नवंबर 2020 में दिल्ली की सीमाओं पर जब धरना शुरू हुआ था, तब शायद न तो आंदोलनकारियों को यह अंदाजा था कि यह इतना लंबा चलेगा और न ही सरकार को यह अनुमान था कि दिल्ली की सीमाओं पर इस तरह आंदोलनकारी डटे रहेंगे। हालांकि अब तो यह आंदोलन उतार पर है।
26 जनवरी को दिल्ली में जो हिंसा हुई उसके बाद से यहां कभी ज्यादा भीड़ नहीं जुटी। धीरे-धीरे आंदोलनकारी कम होते चले गए। ट्रैक्टर-ट्राली भी वापस भेज दिए। अब बार्डर पर तंबू लगे हैं और ट्रैक्टर-ट्राली नाममात्र के बचे हैं।

इस बीच पंजाब में गन्ने को लेकर चल रहे आंदोलन में किसान नेता वहां पर व्यस्त हो गए हैं। सिंघु बार्डर पर 25 अगस्त को संयुक्त मोर्चा की बैठक होनी है, जिसमें आगे की रणनीति बनाई जाएगी। माना जा रहा है कि पिछले दिनों हरियाणा के जिन किसान नेताओं को आंदोलन से ही किसान मोर्चा द्वारा निष्कासित किया गया था, उनका मुद्दा भी इस बैठक में उठ सकता है।
निष्कासन के बाद से ही चार किसान नेताओं द्वारा विभिन्न धरना स्थलों का दौरा किया जा रहा है। वहां पर किसानों से यह पूछा जा रहा है कि आखिरकार उनको आंदोलन से निष्कासित किए जाने का आधार क्या है और उनका क्या कसूर था। उन्होंने तो किसानों के हक की बात उठाई थी, इसमें गलत क्या है।
इतना ही नहीं निष्कासन के बाद चारों किसान नेताओं ने संयुक्त किसान मोर्चा की नौ सदस्यीय कमेटी पर कई तरह के गंभीर आरोप लगाए थे और सरकार से इस कमेटी सदस्यों के बैंक खातों व प्रापर्टी की जांच की भी मांग की थी।
जाहिर है कि किसान नेताओं ने इस तरह के आरोप बगैर किसी आधार के तो लगाए नहीं होंगे। कोई न कोई बात तो उन तक पहुंची ही होगी। हालांकि इस तरह के तमाम आरोपों को लेकर सरकार देखो और इंतजार करो की स्थिति में है।
रेलवे अधिकारियों का कहना है कि गन्ने का समर्थन मूल्य बढ़ाने की मांग को लेकर जालंधर व फगवाड़ा के बीच किसान शुक्रवार से रेल पटरी पर धरना दे रहे हैं। इस वजह से जम्मू व अमृतसर की ओर जाने वाली ट्रेनों की आवाजाही बाधित हो रही है।
पिछले तीन दिनों से ट्रेनें रद हो रही हैं जिससे पंजाब और जम्मू की ओर आने-जाने वाले यात्रियों को परेशानी बढ़ गई है। जम्मू व पंजाब के शहरों से बिहार व अन्य राज्यों में जाने वाली ट्रेनें भी रद करनी पड़ रही हैं। रेल अधिकारियों व आम लोगों को पिछले वर्ष की तरह किसानों का धरना लंबा चलने की चिंता सता रही है।