मुजफ्फरनगर दंगे : यूपी सरकार ने 77 मामले बिना कारण बताए वापस लिए, सुप्रीम कोर्ट में दी गई जानकारी
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नई दिल्ली : मुजफ्फरनगर में 2013 में हुए दंगों से संबंधित 77 केस उत्तर प्रदेश सरकार ने वापस ले लिए हैं।इनमें ज्यादातर केस आइपीसी की धारा 397 के तहत डकैती के आरोप से संबंधित हैं, जिसमें उम्र कैद तक की सजा का प्रविधान है।

राज्य सरकार ने सीआरपीसी की धारा 321 में केस वापस लेने के लिए कोई कारण भी नहीं दिया है। सिर्फ इतना कहा गया है कि प्रशासन ने पूर्ण विचार करने के बाद केस वापस लेने का निर्णय लिया है।

यह जानकारी पूर्व और वर्तमान सांसदों, विधायकों के खिलाफ लंबित मुकदमों की विभिन्न राज्यों से प्राप्त सूचना के आधार पर न्यायमित्र द्वारा सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई रिपोर्ट में दी गई है। रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि कुल 51 पूर्व और वर्तमान सांसदों, विधायकों के खिलाफ मनी लांड्रिंग के मुकदमे लंबित हैं।

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121 पूर्व व वर्तमान सांसदों, विधायकों के खिलाफ सीबीआइ के केस लंबित हैं। सुप्रीम कोर्ट मामले पर बुधवार को सुनवाई करेगा। भाजपा नेता और वकील अश्वनी कुमार उपाध्याय की सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका लंबित है। सांसदों, विधायकों के खिलाफ लंबित मुकदमों की जल्द सुनवाई की मांग पर कोर्ट विचार कर रहा है।

पिछली सुनवाई पर सुप्रीम कोर्ट ने अपने अंतरिम आदेश में कहा था कि धारा 321 के तहत कोई भी मुकदमा हाई कोर्ट की इजाजत के बगैर वापस नहीं लिया जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में वरिष्ठ वकील विजय हंसारिया को सुनवाई में मदद के लिए न्यायमित्र नियुक्त किया है। हंसारिया इस मामले में समय-समय पर कोर्ट में रिपोर्ट दाखिल करते हैं और कोर्ट को सुझाव देते हैं।

इसी क्रम में उन्होंने 24 अगस्त को 14वीं रिपोर्ट दाखिल की है, जिसमें विभिन्न राज्यों और केंद्र सरकार द्वारा सांसदों, विधायकों के खिलाफ लंबित मुकदमों का दिया गया ब्योरा पेश किया गया है। साथ ही सुझाव दिए गए हैं।

रिपोर्ट में कहा गया है कि उत्तर प्रदेश से मिली सूचना के मुताबिक 2013 में हुए मुजफ्फरनगर दंगों में मेरठ जोन के पांच जिलों में 6,869 लोगों के खिलाफ कुल 510 केस दर्ज हुए। इन 510 केसों में से 175 केसों में चार्जशीट दाखिल हो चुकी है।

165 मामलों में फाइनल रिपोर्ट दाखिल हुई। 170 केस एक्सपंज्ड हो गए। इसके बाद 77 केस राज्य सरकार ने सीआरपीसी की धारा 321 के जरिये वापस ले लिए। रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकार ने केस वापस लेने का कोई कारण नहीं बताया है। इनमें बहुत से केस आइसीपीसी की धारा 397 में डकैती के हैं, जिनमें उम्र कैद तक की सजा का प्रविधान है।

हंसारिया और उनकी कनिष्ठ सहयोगी वकील स्नेहा कलिता ने रिपोर्ट में वापस लिए गए मुकदमों की सूची भी संलग्न की है। हंसारिया ने कोर्ट से आग्रह किया है कि वापस लिए गए 77 मुकदमों को हाई कोर्ट को रिवीजनल क्षेत्राधिकार की शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए जांचना-परखना चाहिए।

उत्तर प्रदेश के अलावा रिपोर्ट में कर्नाटक सरकार द्वारा सांसदों, विधायकों के खिलाफ वापस लिए गए मुकदमों का भी ब्योरा दिया गया है। कर्नाटक सरकार ने 62 मुकदमे वापस लिए हैं। मुकदमे वापस लेने का राज्य सरकार ने कोई कारण नहीं बताया है। सिर्फ इतना कहा है कि सरकार ने केस वापस लेने की इजाजत दी है।

हालांकि कर्नाटक हाई कोर्ट ने 62 केस वापस लेने के राज्य सरकार के 31 अगस्त, 2020 के आदेश पर फिलहाल अंतरिम रोक लगा रखी है और मामला अभी कोर्ट में विचाराधीन है। तमिलनाडु ने चार, तेलंगाना ने 14 और केरल ने 36 केस वापस लिए हैं। हंसारिया ने रिपोर्ट में कोर्ट के पिछले आदेश का हवाला दिया है, जिसमें हाई कोर्ट की इजाजत के बगैर कोई भी केस वापस लेने की मनाही की गई है। 

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