कोरोना महामारी के खात्मे व विश्वशांति के लिए महायज्ञ हुआ
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दतिया.जीवन में एक बार किसी साधु व आर्यिका की पुरानी पिच्छी लेने का प्रयास जरूर करना क्योंकि ये पुरानी पिच्छी ही जीवन के अंत तक नई पिच्छी बनकर हमारे हाथ में आयेगी। पुरानी पिच्छी लेने वाला श्रावक होता है तो न्यू पिच्छी लेने वाला अर्यिका व साधु होता है। यह बात मुनिश्री प्रतीक सागर महाराज ने रविवार को सोनेगिर स्थित विशाल धर्मशाला में दिगंबर जैन जागरण युवा संघ रजिस्टर मुंबई के तत्वाधान में आयोजित भक्तंर महा महा व पिच्छी परिवर्तन समारोह में धर्मसभा कोसंबद्रीकृत करते हुए व्यक्त कही।

मुनिश्री ने आगे कहा कि मेरी पिच्छी का परिवर्तन आपके जीवन के परिवतज़्न का कारण बन गया। मुझे मेरे गुरूदेव आचार्यश्री पुष्पदंत सागर महाराज ने मेरे हाथों में पिच्छी देकर मेरा जीवन ही बदल दिया या यूँ कहो कि उन्होने पिच्छी देकर मेरा जीवन अनमोल बना दिया। आज ये पिच्छी ही मेरी पहचान है। ये पिच्छी ही जैन धर्म के जिन शासन की शान है।

उन्हें मुनिश्री की पुरानी पिच्छिका मिली
जैन समाज के प्रवक्ता सचिन जैन आदर्श मिश्र ने बताया कि मुनिश्री प्रतीक सागर महाराज की नव व पुरानी पिच्छी लेने का सौभाग्य महेंद्र कुमार अकित जैन दत्त परिवार को मिला। आचार्यश्री धर्मभूषणसागर महाराज की नव पिच्छी मुकेश जैन शिवपुरी को व पुराने संतोष जैन इटारसी परिवार को प्राप्त हुई। रेजिडेंट के संगीत पार्टी महेंद्र जैन ने जब भजन पिच्छी रे पिच्छी इतना बता तूने कौन सा पुण्य किया है जो गुरूवर ने हाथो में थाम लिया है … यह भजन सुनाया तो सत्तार में जैन समाज के लोग झूमे साथ ही सजी हुई नवनिर्मित पिच्छी। पर सिर पर रखकर नृत्य किया।

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शांति हुई
भगवान आदिनाथ का अभिषेक कई श्रद्धालुओं ने भक्तिभाव से किया। इस अवसर पर विश्वशांति के लिए शांतिधारा की गई। कार्यक्रम में मुनिश्री प्रतीक सागर महाराज ने मंत्रोच्चारण किया।
5400 सौ श्रीफल से रचाया भक्तमर विधान
जैन समाज के प्रवक्ता सचिन जैन ने बताया कि भक्तमार महामंडल महाअर्चना विधान में सौधर्म इंद्र के लिए मुख्य भक्तमर मंढना सहित 108 परिवारो के इंद्र-इंद्राणियो ने केशरिया वस्त्र धारण कर अस्त्रद्रव्य से भैरमार महाअर्चना विधान की महिमा का गुणगान कर पूजा अर्चना करते हुए मुनिश्री ने मंत्रोच्चारण किया। कर भगवान आदिनाथ के चरणों में 108 महाअघ्र्य मढ परे पर समर्पित किया। विधान में 5400 सौ श्रीफल समर्पित किए गए। शाम को 1008 दीपों से आरती के साथ डंडिया ग्रुप नृत्य किया गया।

 

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