कटिहार । तस्करों ने जाली नोट छापने एवं खपाने का तरीका बदल लिया है। दो हजार और पांच सौ के बजाय अब सौ और 50 के जाली नोट को नेपाल के रास्ते लाकर बिहार के विभिन्न जिलों में खपाया जा रहा है। एक नजर में इनकी पहचान मुश्किल होती है। दरअसल सिक्योरिटी फीचर अधिक होने के कारण दो हजार और पांच सौ के भारतीय नोट की नकल हूबहू नहीं हो पाती। इसमें कुछ कमी रह जाती है। इस कारण इसे बी और सी श्रेणी का कहा जाता है। कम फीचर वाले सौ और 50 के जाली नोट असली की तरह जान पड़ते हैं।
असली-नकली की पहचान में बड़े-बड़े धोखा खा जाते हैं, लिहाजा इन्हें ए श्रेणी में रखा जाता है। जाली नोट खपाने के लिए तस्करों के सिंडिकेट ने कमीशन एजेंट नियुक्त किए हैं। गुरुवार को कटिहार जिले के कुर्सेला थाना क्षेत्र से 34,500 रुपये के जाली नोट के साथ भागलपुर और मधेपुरा के दो युवकों को गिरफ्तार किया गया था। उनमें दो हजार, पांच सौ, सौ और 50 रुपये के नोट थे। कटिहार के पुलिस अधीक्षक ताते हैं कि अररिया के किसी व्यक्ति ने दोनों युवकों को जाली नोट दिए थे। पुलिस तफ्तीश और कार्रवाई में जुटी है।
नेपाल की सीमावर्ती अररिया बिहार में सीमांचल के उन चार जिलों में से है, जिनमें कटिहार भी शामिल है। जाली नोट की तस्करी में नए गिरोह की सक्रियता भी उजागर हो रही है। नोटबंदी के पूर्व तक नेपाल से लगी जोगबनी सीमा से बड़े पैमाने पर तस्करी होती थी। दो हजार और पांच सौ के नए जाली नोट आने के बाद ग्रामीण इलाकों में खपाने के लिए इस गिरोह की सक्रियता बढ़ गई है।
दो हजार और पांच सौ रुपये के नए नोट में सिक्योरिटी फीचर अधिक होने के कारण जाली नोट के तस्कर आसानी से उनकी नकल नहीं कर पाते हैं। असली नोट की स्कैनिंग कर स्थानीय स्तर पर ही उनकी छपाई की जाती है। जाली नोट के धंधेबाजों को शहरी इलाकों में इन्हें खपाना मुश्किल होता है। गांव के हाट-बाजारों में कम-पढ़े लिखे दुकानदारों के बीच खपा दिया जाता है। ]
जाली नोट के धंधेबाज ऐसे नोट को बी और सी ग्रेड की करेंसी कहते हैं। वहीं 100 व 50 रुपये के जाली नोटों की सुपर क्वालिटी के होने के कारण उन्हें ए ग्रेड के जाली नोटों की श्रेणी में रखा जाता है। खुफिया सूत्र इनकी छपाई पाकिस्तान में होने की बात कहते हैं। सुपर क्वालिटी के जाली नोट की पहचान करना एक नजर में मुश्किल होता है। छोटे नोट होने के कारण शहरी इलाकों में भी इसे आसानी से खपा लिया जाता है।