नई दिल्ली : अपनी नाबालिग बेटी के साथ दुष्कर्म करने के आरोपित व्यक्ति को जमानत देने के राजस्थान हाई कोर्ट के आदेश पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी। शीर्ष अदालत ने कहा कि मामले में कम-से-कम अभियोजन पक्ष के गवाहों के बयान दर्ज होने तक न्याय के हित में आरोपित का जेल में रहना जरूरी है। सुप्रीम कोर्ट ने आरोपित को एक सप्ताह के अंदर सक्षम अदालत के समक्ष समर्पण करने का निर्देश दिया।
न्यायालय ने पीड़िता द्वारा पिता को जमानत देने के हाई कोर्ट के पिछले साल सितंबर में दिए गए आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर यह आदेश सुनाया। जस्टिस संजय किशन कौल और ऋषिकेश राय की पीठ ने कहा, राज्य की ओर से पक्ष रख रहे वकील ने बताया है कि मामले में इस साल सितंबर में सुनवाई शुरू होगी और इसे जल्द-से-जल्द पूरा करने का हरसंभव प्रयास किया जाएगा।
पीठ ने अपने आदेश में कहा, इसलिए हमारा विचार है कि न्याय के हित में तथा कानून के अनुसार प्रतिवादी संख्या 2 (आरोपित) का कम-से-कम तब तक कैद में रहना जरूरी है, जब तक अभियोजन पक्ष के गवाहों के बयान दर्ज नहीं हो जाते। आरोपित के खिलाफ पिछले साल अप्रैल में भारतीय दंड संहिता और पाक्सो कानून के तहत प्राथमिकी दर्ज कराई गई थी। लड़की ने अपनी शिकायत में आरोप लगाया था कि जब वह चौथी कक्षा की परीक्षा देने जा रही थी तो आरोपित ने उसका यौन उत्पीड़न किया और यह सिलसिला जारी रहा।