वाराणसी : भगवान शिव की नगरी, काशी, बनारस, वाराणसी जो भी कहें, मगर तीनों लोकों से न्यारी इस नगरी का महत्व आज भी कम नहीं है। इस नगरी का जिक्र मत्स्य पुराण में किया गया है। हालांकि, सबका अपना मत है, लेकिन पौराणिक आख्यानों के अनुसार ‘वरुणा’ व ‘असि’ नामक नदियों के बीच में बसने के कारण इस नगर का नाम वाराणसी पड़ा।
वाराणसी को पुरातन काल से अब तक कई नामों से बुलाया जाता है। बौद्ध और जैन धर्म का बड़ा केंद्र होने से इसके नाम उस दौर में सुदर्शनपुरी और पुष्पावती भी रहे हैं। वाराणसी को अविमुक्त, आनंदवन, रुद्रवास के नाम भी जाना जाता रहा है।
इसके करीब 18 नाम- वाराणसी, काशी, फो लो-नाइ (फाह्यान द्वारा प्रदत्त नाम), पो लो – निसेस (ह्वेनसांग द्वारा प्रदत्त नाम), बनारस (मुस्लिमों द्वारा प्रयुक्त), बेनारस, अविमुक्त, आनंदवन, रुद्रवास, महाश्मशान, जित्वरी, सुदर्शन, ब्रह्मवर्धन, रामनगर, मालिनी, पुष्पावती, आनंदकानन व मोहम्मदाबाद आदि नाम पुरातन काल में लोगों की जुबान पर रहे हैं।
24 मई, 1956 को प्रशासनिक तौर पर इसका सर्वमान्य नाम वाराणसी स्वीकार किया गया था। मिला आधुनिक नाम 1965 में प्रकाशित वाराणसी गजेटियर के दसवें पृष्ठ पर जिले का प्रशासनिक नाम वाराणसी करने की तिथि अंकित है। इसके साथ गजेटियर में इसके वैभव संग विविध गतिविधियां भी दर्ज हैं।
गजेटियर में इसके काशी, बनारस और बेनारस आदि नामों के प्राचीनकाल से प्रचलन के तथ्य और प्रमाण हैं, मगर आजादी के बाद प्रशासनिक तौर पर ‘वाराणसी’ नाम की स्वीकार्यता राज्य सरकार की संस्तुति से इसी दिन की गई थी। वाराणसी की संस्तुति जब शासन स्तर पर हुई तब डा. संपूर्णानंद मुख्यमंत्री थे।
उनकी पृष्ठभूमि वाराणसी से थी और वो विद्यापीठ में अध्यापन से भी जुड़े रहे थे। अतीत से अब तक की कहानी गजेटियर के अलावा पुराणों व इतिहास की किताबों में काशी की महिमा का बखान मिलता है। इतिहासकार डा. पूनम पांडेय के अनुसार काशी को प्राचीन काल में आनंदकानन कहा जाता था, यह वानप्रस्थ और संन्यास आश्रम का केंद्र था। देश के प्रमुख मार्गों से जुड़ा और व्यापार का पड़ाव था।
लिहाजा देशभर के लोग यहां आए और बस गए। लिहाजा मुस्लिमों ने समरसता को देखते हुए इसे बनारस कहा तो उनके बाद अंग्रेजों ने बेनारस। स्कंद पुराण के अनुसार काशी नाम ‘काश्य’ शब्द से बना है, इसका अर्थ प्रकाश से है जो मोक्ष की राह प्रकाशित करता है। शहर की बनावट और बसावट को देखें तो आज भी देशभर के अलग अलग राज्यों के लोग अब बनारस में रच बस चुके हैं और इसे मिनी इंडिया कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी।