मंकीपॉक्स के संदिग्ध मामले की जांच जारी, स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा- चिंता की कोई बात नहीं

नई दिल्ली : एक युवा पुरुष रोगी, जिसने हाल ही में एमपॉक्स (मंकीपॉक्स) के प्रकोप वाले देश से यात्रा की थी, की पहचान एमपॉक्स के एक संदिग्ध मामले के रूप में की गई है। मरीज को एक निर्दिष्ट अस्पताल में अलग कर दिया गया है और वर्तमान में उसकी हालत स्थिर है।

एमपॉक्स की मौजूदगी की पुष्टि के लिए मरीज के नमूनों का परीक्षण किया जा रहा है। इस मामले को स्थापित प्रोटोकॉल के अनुरूप प्रबंधित किया जा रहा है और संभावित स्रोतों की पहचान करने एवं देश के भीतर प्रभाव का आकलन करने हेतु मरीज के संपर्क में आने वाले लोगों का पता लगाना जारी है।

इस मामले का विकास एनसीडीसी द्वारा पहले किए गए जोखिम मूल्यांकन के अनुरूप है और किसी भी अनुचित चिंता का कोई कारण नहीं है।

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देश ऐसे अलग-अलग यात्रा संबंधी मामलों से निपटने के लिए पूरी तरह से तैयार है और उसके पास किसी भी संभावित जोखिम को प्रबंधित तथा कम करने के लिए मजबूत उपाय उपलब्ध हैं।

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने भारत में दवा प्रतिरोधी टीबी के लिए नई छोटी और अधिक प्रभावी उपचार पद्धति शुरू करने को मंजूरी दी : केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने अपने राष्ट्रीय टीबी उन्मूलन कार्यक्रम (एनटीईपी) के तहत बहु-दवा प्रतिरोधी टीबी (एमडीआर टीबी) के लिए एक अत्यधिक प्रभावी और कम समय के उपचार विकल्प के रूप में बीपीएएलएम पद्धति शुरू करने को मंजूरी दी है।

 इसका उद्देश्य माननीय प्रधानमंत्री  नरेन्द्र मोदी के विजन के अनुरुप, सतत विकास लक्ष्यों के तहत, बीमारी को 2025 तक यानी वैश्विक लक्ष्य से पांच साल पहले, देश को टीबी से मुक्त करना है। 

इस उपचार पद्धति में एक नई टीबी रोधी दवा प्रीटोमैनिड शामिल है, जिसे बेडाक्विलाइन और लाइनजोलिड (मोक्सीफ्लोक्सासिन सहित/बिना) के साथ मिलाया गया है। प्रीटोमैनिड को पहले ही भारत में उपयोग के लिए केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (सीडीएससीओ) द्वारा अनुमोदित किए जाने के साथ ही लाइसेंस भी दिया जा चुका है।

बीपीएएलएम उपचार पद्धति में चार दवाओं – बेडाक्विलाइन, प्रीटोमैनिड, लाइनजोलिड और मोक्सीफ्लोक्सासिन का संयोजन है। यह उपचार पद्धति पिछली एमडीआर-टीबी उपचार प्रक्रिया की तुलना में सुरक्षित, अधिक प्रभावी और उपचार का तेज विकल्प साबित हुई है। पारंपरिक एमडीआर टीबी उपचार गंभीर दुष्प्रभावों के साथ 20 महीने तक चलते हैं। जबकि, बीपीएएलएम उपचार पद्धति दवा प्रतिरोधी टीबी को केवल छह महीने में ठीक कर सकती है और उपचार की सफलता दर भी उच्च है। 

भारत के 75,000 दवा प्रतिरोधी टीबी रोगी अब इस छोटी अवधि की उपचार पद्धति का लाभ उठा सकेंगे। अन्य लाभों के साथ, लागत में कुल मिलाकर बचत होगी।

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