मुंबई : पिछले वर्ष महाराष्ट्र में आए निसर्ग तूफान के साथ-साथ कई बार हुई बेमौसम बारिश ने मौसंबी की फसल को नुकसान पहुंचाया है। इसका नुकसान मौसंबी उत्पादक किसानों को तो हुआ ही है, देश की फल मंडियों में मौसंबी के भाव भी पिछले वर्ष की तुलना में चढ़े दिखाई दे रहे हैं।
देश में कोविड-19 की शुरुआत के बाद डाक्टरों की सलाह पर लोगों ने अपने आहार में नींबू प्रजाति के फलों की संख्या बढ़ा दी थी।
क्योंकि ये फल विटामिन सी के सीधे स्त्रोत माने जाते हैं। संयोग से उस समय फल मंडियों में मौसंबी की आवक अच्छी हो रही थी एवं दाम भी अधिक नहीं थे। लेकिन पिछले वर्ष की तुलना में इस वर्ष मौसंबी की आवक कम है और दाम भी आम आदमी की पहुंच से बाहर दिख रहे हैं।
महाराष्ट्र के मौसंबी उत्पादक किसान कांतराव देशमुख इसका कारण बताते हुए कहते हैं कि पिछले वर्ष कई बार हुई बेमौसम बरसात एवं पानी की जरूरत के समय पड़ गए सूखे ने फसल को काफी नुकसान पहुंचाया।
इसका असर आज मौसंबी के कम उत्पादन के रूप में दिखाई दे रहा है। उत्पादन पिछले वर्ष की तुलना में लगभग आधा हो गया है। इसके कारण देश की फल मंडियों में मौसंबी के भाव चढ़े नजर आ रहे हैं।
बता दें कि महाराष्ट्र के मराठवाड़ा क्षेत्र एवं आंध्र प्रदेश व तेलंगाना के कुछ क्षेत्रों में 1.9 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में करीब 34.83 लाख टन मौसंबी का उत्पादन होता है। इसमें भी 75 फीसद उत्पादन मराठवाड़ा के औरंगाबाद, जालना, नांदेड़ एवं परभणी आदि जिलों में होता है। देशमुख बताते हैं कि मौसंबी की मुख्यतया तीन फसलें होती हैं।
हस्त बहार में फल लगने की शुरुआत मौसमी कैलेंडर के हस्ति नक्षत्र से होती है। मृग बहार की शुरुआत मृगशिरा नक्षत्र से होती है एवं आंबिया बहार की शुरुआत महाराष्ट्र में आमों के बौर लगने के साथ शुरू होती है। सामान्यतया इसके नौ माह बाद फल तैयार हो जाते हैं।
इस नौ महीने की अवधि में कुछ महीने खेतों को सूखा रखना पड़ता है, तो कुछ महीने बरसात की जरूरत पड़ती है। पिछले वर्ष यही संतुलन कायम नहीं रह सका। सूखे की जरूरत के वक्त बेमौसम बरसात एवं पानी की जरूरत के समय पड़ गए सूखे ने मौसंबी की फसल को काफी नुकसान पहुंचाया है।
इसके कारण उत्पादन इस बार 50 फीसद से भी कम हो गया है। देशमुख बताते हैं कि पहले किसान एक ही तरह की मौसंबी का उत्पादन करते थे। अब इसमें भी कई किस्में आ गई हैं। न्यू शेलर पतले छिलके वाली होती है, लेकिन इसके पेड़ों पर छोटे-बड़े दोनों तरह के फल लगते हैं।
काटोल बोर्ड किस्म में एक ही आकार की मीठी मौसंबी लगती हैं। जबकि आंध्र प्रदेश एवं तेलंगाना से आनेवाली ज्यादातर मौसंबियां थोड़ा खट्टी होती हैं। जूस बेचनेवाले इन मौसंबियों का उपयोग चीनी डालकर जूस बेचने के लिए करते हैं, इसलिए इन्हें चीनी मौसंबी के नाम से जाना जाता है।