लखनऊ. अब इसे इत्तेफाक कहें या सोची समझी रणनीति … कुछ भी हो, लेकिन उत्तर प्रदेश की सियासत ने आज एक बार फिर अपना इतिहास बदल दिया है। पिछले साल 7 दिसंबर को ही समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव अपने घर व कार्यालय से बाहर निकलकर सड़क पर उतरे थे और विधानसभा गेट पर धरना दिया था। तब मुद्दा उन्नाव गैंगरेप पीड़ित को न्याय दिलाना था। ठीक एक साल बाद आज सात दिसंबर को एक बार फिर अखिलेश यादव किसानों के हक में सड़क पर उतरकर धरने पर बैठे। करीब 25 मिनट की झड़प के बाद पुलिस ने अखिलेश यादव को हिरासत में लेकर इको गार्डन भेज दिया।
अखिलेश यादव केंद्र सरकार के नए कृषि कानूनों के खिलाफ शुरुआत से ही मुखर हैं। ये सबके बीच एक सवाल उभर कर कर सामने आया कि साल भर बाद सड़क पर उतरे अखिलेश यादव क्या यूपी के किसान व यहां की जनता के दिल में जगह बना पाएंगे?
25 मिनट बैठे हुए धरने पर अखिलेश यादव
समाजवादी पार्टी ने कन्नौज में किसान आंदोलन के समर्थन में किसान यात्रा का आयोजन किया था। इसके लिए अखिलेश यादव को कन्नौज जाना था, लेकिन पुलिस ने उनके आवास विक्रमादित्य मार्ग पर देर रात से ही पहरा बिठा दिया। इसकी जानकारी मिलते ही कार्यकर्ता जुटे लगे और देखते ही देखते वहां कई सपा के नेता जमा हो गए। दोपहर में फिर अखिलेश यादव घर से बाहर आए। उन्होंने पुलिस बैरिकेटिंग तोड़ते हुए बंदरियाबाग चौराहे पर धरने पर बैठ गए। उनके साथ कार्यकर्ता भी धरने पर बैठ गए। इस दौरान उन्होंने सत्तापक्ष पर उत्पीड़न का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि हमारा वाहन भी दूर कर लिया गया है। हालांकि, 25 से 30 मिनट बाद पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया।
एक दिन के धरने से कुछ नहीं होगा
किसानों का मुद्दा क्या समाजवादी पार्टी के सड़क पर उतरने की शुरुआत है? इस सवाल का जवाब देते हुए यूपी की सियासत के जानकार वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप कपूर कहते हैं कि सिर्फ एक दिन के धरने से कुछ नहीं होने वाला है। जन सरोकार के मुद्दों को लेकर अखिलेश यादव को लगातार सड़क पर उतरना होगा। उन्हें याद करना होगा कि जब 2012 से पहले उन्होंने साइकिल यात्रा की थी, तब पार्टी सत्ता में आई थी और वह सपा का सबसे बड़ा चेहरा बन कर उभरी हुई थीं। कोरोना काल में तो सबसे ज्यादा संघर्ष कांग्रेस ने किया है, लेकिन मजबूत संगठन ने होने की वजह से वह कमजोर पड़ती है। जबकि सपा का तो संगठन भी मौजूद है। ऐसे में अखिलेश यादव ने सड़क पर उतरने का मन बनाया है तो उन्हें आने वाले दिनों में इसका फायदा भी मिल सकता है।
किसानों का मुद्दा कैसे फायदा पहुंचा?
10 नवंबर 2020 को बीते उपचुनाव का रिजल्ट आया तो 7 सीटों में एक सपा को मिली जबकि 6 भाजपा को। इनमें से पूर्वी उत्तरप्रदेश की बुलंदशहर सीट भी भाजपा के खाते में आई, जबकि उस सीट पर सपा और रालोद मिलकर चुनाव लड़ रहे थे। यही नहीं यहां रालोद कृषि बिल का मुद्दा भी जोर शोर से उठा रहा था। लेकिन उसकी जमानत टूट गई। सीनियर जर्नलिस्ट बृजेश शुक्ला कहते हैं कि यूपी में किसानों का मुद्दा कोई बहुत बड़ा मुद्दा नहीं है। सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव को सड़क पर उतरना है तो उन्हें मुद्दा चुनना होगा। यह अलग बात है कि किसान आंदोलन चल रहा है तो आपने सांकेतिक धरना प्रदर्शन किया है। लेकिन आगे के लिए मुद्दा चुनना होगा। वह कहते हैं कि आप देखिए कि जहां दिल्ली बॉर्डर पर पंजाब-हरियाणा के किसान पहुंचे हैं, वहीं यूपी के एक हिस्से के किसान ही आंदोलन में पहुंचे हैं।
पार्टी में नई ऊर्जा का संचार हो सकता है?
हाथरस में रेप पीड़ित के मामले में जिस तरह रातों रात प्रियंका और राहुल ने मौके पर पहुंच कर सुर्खियां बटोरी, ऐसे ही जनता के दिलों में जगह बनानी है तो अखिलेश यादव को भी अपनी ऐसी ही रणनीति बनानी होगी। बृजेश शुक्ला का कहना है कि एक दिन सड़क पर उतरे और फिर साल भर का गैप हो जाए तो ऐसे धरना प्रदर्शन का कोई फायदा नहीं। प्रदीप कपूर कहते हैं कि ऐसे धरना प्रदर्शन फिर आपकी पार्टी में नई ऊर्जा का संचार ही कर सकते हैं। बाकी और कोई फायदा नहीं है।
क्या यह एसपी के सड़क पर उतरने की शुरुआत भर है?
प्रदीप कपूर कहते हैं कि ऐसा नहीं है कि सपा सड़कों पर नहीं जा रही है। कभी राज्यपाल के यहाँ तो कभी विधानसभा के सामने योगी सरकार में कई बार सपा ने जोरदार प्रदर्शन किया है और लाठियां भी खाई हैं। लेकिन सपा को एक बार फिर से चेहरा चाहिए, जोकि सड़क पर उतरे और जन सरोकार के मुद्दों को उठाए और समाजवादी पार्टी में इस वक्त अखिलेश से बड़ा कोई चेहरा नहीं है। अगर वह आने वाले दिनों में सपा के आंदोलनों की अगुवाई करते हैं तो उनकी पार्टी के लिहाज से उन्हें फायदा मिल सकता है।