नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि किसी भी व्यक्ति को अपने नाम पर पूर्ण नियंत्रण होना चाहिए और कानून को यह सुनिश्चित करना होगा कि वह हमेशा ही निर्बाध रूप से इसको बनाए रखने के अपने अधिकार का इस्तेमाल करता रहे।
शीर्ष अदालत ने कहा कि किसी व्यक्ति की पहचान भारत में संवैधानिक योजना के सर्वाधिक निकट संरक्षित क्षेत्रों में से एक है। कोर्ट ने केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) को निर्देश दिया कि वह बोर्ड द्वारा जारी प्रमाणपत्र में नाम बदलवाने के छात्रों के आग्रह की प्रक्रिया पर आगे बढ़े।
कोर्ट ने उदाहरण देते हुए कहा कि यदि किसी यौन शोषण पीड़िता का नाम मीडिया या जांच इकाई की लापरवाही से उजागर हो जाए तो पूर्ण कानूनी संरक्षण के बावजूद वह अपने अतीत को भुलाने के अधिकार का इस्तेमाल कर समाज में अपने पुनर्वास के लिए अपना नाम बदलने को कह सकती है। लेकिन यदि सीबीएसई उसका नाम बदलने से इन्कार कर दे तो उसे अतीत से जुड़े भय के साए में रहने को विवश होना पड़ेगा।
जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस कृष्ण मुरारी की पीठ ने कहा कि बोर्ड और छात्र प्रभाव के मामले में समान स्थिति में नहीं हैं और सुविधा संतुलन छात्रों के पक्ष में झुकेगा। कोर्ट ने कहा कि प्रमाणपत्रों में त्रुटियां होने से बोर्ड के मुकाबले छात्रों को अधिक नुकसान उठाना पड़ता है।
कोर्ट ने संबंधित मामले में कहा कि सीबीएसई द्वारा नाम इत्यादि में सुधार के वास्ते आवेदन करने के लिए ऐसी कोई पूर्व शर्त नहीं थोपी जा सकती कि यह परिणामों के प्रकाशन से पहले ही किया जाना चाहिए क्योंकि ऐसा करना अनुचित और ज्यादतीभरा होगा।