हाईकोर्टों को कोरोना पर असंभव आदेश पारित करने से बचना चाहिए : सुप्रीम कोर्ट
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नई दिल्ली : उत्तर प्रदेश में कस्बों और गांवों की स्वास्थ्य व्यवस्था को राम भरोसे बताते हुए छोटे कस्बों और गांवों में इलाज की सुविधाएं बढ़ाने के बारे में दिए गए इलाहाबाद हाई कोर्ट के 17 मई के आदेश पर सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम रोक लगा दी है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाई कोर्टों को आदेश देते वक्त उसके अमल की संभावनाओं पर भी विचार करना चाहिए। ऐसे आदेश नहीं देने चाहिए, जिन पर अमल संभव न हो। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने तीखी टिप्पणी करते हुए इलाज के इंतजामों और टीकाकरण पर विस्तृत आदेश दिए थे। जिन पर अमल को मुश्किल बताते हुए प्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। शुक्रवार को जस्टिस विनीत सरन और जस्टिस बीआर गवई की पीठ ने आदेश पर अंतरिम रोक तो लगा दी, लेकिन चल रही सुनवाई पर रोक नहीं लगाई। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाई कोर्ट के 17 मई के निर्देशों को आदेश की तरह नहीं बल्कि सलाह के तौर पर माना जाएगा। हाई कोर्ट ने कहा है कि ‘बी’ और ‘सी’ श्रेणी के सभी कस्बों में 20 एंबुलेंस और प्रत्येक गांव में आइसीयू से लैस दो एंबुलेंस एक महीने में उपलब्ध कराई जाएं। सालिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि प्रदेश में 97,000 गांव हैं, ऐसे में आदेश पर अमल संभव नहीं है। हाई कोर्ट को आदेश पारित करते समय उसके प्रभाव और अमल की संभावनाओं का भी ध्यान रखना चाहिए। सरकार मानती है कि हाई कोर्ट जनहित को ध्यान में रखते हुए कोरोना मामलों की सुनवाई कर रहे हैं। सरकार हर तरह से उसमें सहयोग करती है और कोर्ट के आदेशों पर अमल को लेकर प्रतिबद्ध है। लेकिन हाई कोर्ट ने आदेश दिया है कि मेडिकल कंपनियां वैक्सीन का फार्मूला लेकर वैक्सीन का उत्पादन करें, आखिर यह कैसे संभव है। कई मामलों में वैक्सीन पेटेंट कानून में आती है। आक्सीजन की उपलब्धता पर भी आदेश दिया है, इसका अन्य राज्यों पर भी प्रभाव पड़ेगा। हाई कोर्ट को आदेश देते समय उसके राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय प्रभावों पर भी विचार करना चाहिए। मेहता ने कहा कि हाई कोर्ट ने प्रदेश की स्वास्थ्य सेवाओं को राम भरोसे कहा है, यह टिप्पणी कोरोना के इलाज में जुटे डाक्टरों और स्वास्थ्य कर्मियों को हतोत्साहित करने वाली और लोगों में चिंता पैदा करने वाली है। वह हाई कोर्ट की चिंता समझ सकते हैं, लेकिन कोर्ट को भी न्यायिक संयम बरतना चाहिए। मेहता ने कहा कि यह मामला बहुत महत्वपूर्ण है और ऐसे मामले अन्य हाई कोर्टों में भी चल रहे हैं, इसलिए अच्छा होगा कि कोर्ट निर्देश दे कि ये मामले हाई कोर्टों में मुख्य न्यायाधीश की पीठें सुनें। सुप्रीम कोर्ट ने मेहता की दलीलें सुनने के बाद अपने आदेश में कहा कि वह जनहित में हाई कोर्ट द्वारा की जा रही सुनवाई की सराहना करते हैं, लेकिन असंभवता का सिद्धांत कोर्ट में भी लागू होता है। मामलों की सुनवाई हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की पीठ में होने की मांग पर कोर्ट ने कहा कि वह सभी मामलों में समान आदेश नहीं दे सकते। पीठ गठन का अधिकार मुख्य न्यायाधीश का होता है। पीठ ने कहा कि उन्होंने संतुलित आदेश दिया है, वह हाई कोर्ट को हतोत्साहित नहीं करना चाहते। कोर्ट ने वरिष्ठ वकील निधेश गुप्ता को सुनवाई में मदद के लिए नियुक्त किया और मामले को 14 जुलाई को फिर सुनवाई पर लगाने का आदेश दिया है। 

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