New Delhi News : नई दिल्ली । देश में कोरोना वैक्सीन की कमी की सूचनाओं के बीच दो सकारात्मक खबरें भी सोमवार को आई हैं। भारत में रूसी कोरोना वैक्सीन स्तुपतनिक-वी का उत्पादन शुरू हो गया है। वहीं घरेलू दवा कंपनी भारत बायोटेक ने विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) में अपनी वैक्सीन कोवैक्सीन के इमरजेंसी इस्तेमाल की अनुमित के लिए आवेदन किया है। वैसे इन दोनों घटनाओं से भारत में तत्काल वैक्सीन आपूर्ति में कोई मदद नहीं मिलेगी। लेकिन इस बात के लिए आश्वस्त हुआ जा सकता है कि दो-तीन महीने बाद इनका अच्छा असर दिखाई देगा।
रूस के गामालेया वैज्ञानिक अनुसंधान संस्थान ने स्पुतनिक-वी वैक्सीन विकसित की है। रूसी निवेश कोष रशियन डायरेक्ट इंवेस्टमेंट फंड (आरडीआइएफ) और पैनेसिया बायोटेक ने इस वैक्सीन का उत्पादन शुरू करने की घोषणा की है। पैनेसिया के हिमाचल प्रदेश के बद्दी स्थित संयंत्र में स्पुतनिक-वी के पहले बैच का उत्पादन किया जा रहा है। पहले बैच को गुणवत्ता जांच के लिए गामालेया सेंटर भेजा जाएगा। आरडीआइएफ और पैनेसिया बायोटेक ने पिछले महीने ही भारत में हर साल स्पुतनिक-वी वैक्सीन की 10 करोड़ डोज तैयार करने की घोषणा की थी। इस संयंत्र में बड़े पैमाने पर इस वैक्सीन का उत्पादन गर्मियों में शुरू होगा।
पैनेसिया का संयंत्र पूरी तरह से अंतरराष्ट्रीय मानकों के मुताबिक और इसे डब्ल्यूएचओ से भी आवश्यक मंजूरी मिली हुई है। स्पुतनिक-वी वैक्सीन को भारत सरकार ने 12 अप्रैल 2021 को ही इमरजेंसी इस्तेमाल की अनुमति दी है और 14 मई 2021 से इसकी डोज दी जाने लगी है। स्पुतनिक-वी को 66 देशों में मंजूरी यह भी बताया गया है कि स्पुतनिक-वी को अभी तक 66 देशों ने इमरजेंसी इस्तेमाल की अनुमति दी हुई है। आरडीआइएफ भारत में स्पुतनिक-वी का उत्पादन पैनेसिया के अलावा पांच और कंपनियों के साथ मिल कर करेगी।
कंपनी ने पहले ही कहा है कि वह भारत में अगले वर्ष से 85 करोड़ डोज का उत्पादन करने लगेगी। डब्ल्यूएचओ से अब तक सात वैक्सीन को मिली है मंजूरी। इस बीच भारत बायोटेक ने कोवैक्सीन के इमरजेंसी इस्तेमाल की अनुमति के लिए डब्ल्यूएचओ में आवेदन कर दिया है। इसके पहले सीरम इंस्टीट्यूट की कोविशील्ड ने आवेदन किया था और उसे आवश्यक लाइसेंस मिला हुआ है। वैसे भारत के साथ ही कुछ दूसरे देशों में कोवैक्सीन लगाई जा रही है। डब्ल्यूएचओ से अभी सात कंपनियों की वैक्सीन को लाइसेंस मिला है। इस लाइसेंस के मिलने का फायदा यह होगा कि जिन भारतीयों ने कोवैक्सीन ली है, वो दूसरे देशों में आसानी से आ-जा सकेंगे। डब्ल्यूएचओ की मंजूरी मिलने के बाद दूसरे देशों की नियामक एजेंसियों से भी आसानी से मंजूरी मिल जाएगी। इससे भारत बायोटेक को कोवैक्सीन के निर्यात में भी आसानी होगी।