नई दिल्ली । पांच राज्यों के चुनाव में शिकस्त के बाद जितिन प्रसाद का पार्टी छोड़ना कांग्रेस के लिए बड़ा सियासी झटका है। इसमें दो राय नहीं कि पार्टी के सबसे संकटपूर्ण दौर में ही युवा पीढ़ी के उसके चेहरे तितर-बितर होने लगे हैं। ज्योतिरादित्य सिंधिया के बाद जितिन कांग्रेस के बिखरते युवा नेतृत्व का आखिरी पन्ना नहीं हैं बल्कि इस सिलसिले के आगे भी जारी रहने की संभावनाएं हैं। राजस्थान में विद्रोह के मुहाने से लौटे सचिन पायलट, महाराष्ट्र में मिलिंद देवड़ा से लेकर हरियाणा में दीपेंद्र हुड्डा जैसे कांग्रेस के युवा चेहरे पार्टी की मौजूदा दशा-दिशा से परेशान होकर अपने राजनीतिक भविष्य की वैकल्पिक संभावनाओं पर गौर कर रहे हैं।
कांग्रेस से राजनीतिक पारी का आगाज कर अपनी पहचान बनाने वाले इन युवा चेहरों का पार्टी छोड़ने का सिलसिला स्पष्ट तौर पर इस बात का संकेत है कि चाहे ज्योतिरादित्य हों या जितिन, इन नेताओं को कांग्रेस में अपना राजनीतिक भविष्य नहीं दिखाई दे रहा। इस कारण वे भाजपा को अपना अगला पड़ाव बनाने में कोई संकोच नहीं कर रहे। जितिन तो पिछले लोकसभा चुनाव के समय से ही भाजपा में जाने को तैयार थे। मगर प्रियंका गांधी वाड्रा के सियासत में आने के बाद हालात बदलने की उम्मीद में दो साल ठहर गए, पर अंतत: राजनीतिक कैरियर की खातिर विचाराधारा के सियासी आवरण को उतार फेंक जितिन भाजपा के हो लिए।
इसके साथ ही बीते डेढ़ दशक से कांग्रेस के युवा चमकते चेहरों की टीम का बिखराव तेज हो गया है। सचिन पायलट की नाराजगी दूर करने के लिए एक साल पहले किए गए वादे पर अभी तक अमल नहीं हुआ है और स्वाभाविक रूप से राजस्थान में एक बार फिर वे अपने असंतोष को छिपा नहीं रहे हैं। जितिन के पार्टी छोड़ने के बाद हाईकमान इससे सबक लेकर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को पायलट और उनके समर्थकों को तवज्जो दिलाने के लिए गंभीर नहीं हुआ तो विद्रोह की चिंगारी कभी भी फूट सकती है।
पार्टी नेतृत्व के लिए यह बात चिंतनीय है कि जिन युवा चेहरों को कांग्रेस के भविष्य की सियासत के लिए उसने तैयार किया। उनका ही आज संगठन व लीडरशिप दोनों में भरोसा दिखाई नहीं दे रहा। वे भाजपा में अपना राजनीतिक भविष्य देख रहे हैं। जबकि 2004 में संप्रग के सत्ता में आने के बाद कांग्रेस ने इन सभी युवा चेहरों को न केवल आगे बढ़ाया बल्कि केंद्रीय मंत्रिमंडल से लेकर पार्टी के शीर्ष संगठन में एक दशक तक अहम जिम्मेदारियां दी।
महाराष्ट्र में मिलिंद देवड़ा बीते कुछ साल से लगातार कांग्रेस की मौजूदा स्थिति पर सवाल उठाते हुए चिंता जाहिर करते रहे हैं और कुछ मौकों पर तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ भी कर चुके हैं। ऐसे में देवड़ा कब तक कांग्रेस को अपना सियासी घर बनाए रखते हैं इसको लेकर अटकलें तो लगाई ही जा रही हैं। इसी तरह हरियाणा में भूपेंद्र सिंह हुड्डा के हाईकमान के साथ समीकरण दुरुस्त नहीं होने के कारण युवा दीपेंद्र हुड्डा भी सियासी बाउंड्री लाइन पर ही खड़े माने जा रहे हैं।
यूं तो पिछले कुछ महीनों में भाजपा में शामिल होने वालों की लंबी कतार होती थी और चुनावी माहौल में वह सब सामान्य था लेकिन बुधवार को जब भाजपा के राष्ट्रीय मीडिया प्रभारी और राज्यसभा सांसद अनिल बलूनी ने किसी लोकप्रिय चेहरे के पार्टी में आने की खबर दी तो अटकलों की बाढ़ भी आ गई। कांग्रेस में संदेह का साया गहरा गया। बलूनी के ट्वीट के जवाब में कइयों ने अलग-अलग नाम पेश कर दिए। लेकिन सूत्रों की मानी जाए तो यह अटकल सबसे ज्यादा कांग्रेस खेमे में लगाई जाने लगी।
पार्टी से नाराज जितिन प्रसाद पर तो सबकी नजरें थीं ही लेकिन सचिन पायलट से लेकर मिलिंद देवड़ा तक सब पर संदेह की सुई चलती रही। सूत्रों के अनुसार अलग अलग नेताओं को टटोलने और संपर्क साधने का भी जिम्मा भी दे दिया गया और हर किसी की वर्तमान लोकेशन का पता लगाया जाने लगा। अलग अलग स्तर पर कई नेताओं की घंटी बजी। यह इतना गुप्त रखा गया था कि भाजपा कार्यालय के अंदर कई वरिष्ठ पदाधिकारियों को भी अंतिम मौके पर ही इसकी भनक लगी कि शामिल होने वाले जितिन प्रसाद हैं।