मुंबई : शरद पवार के दिल्ली स्थित आवास पर मंगलवार को बुलाई गई बैठक के पीछे यशवंत सिन्हा एवं चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर का दिमाग भले ही बताया जा रहा हो लेकिन इस बैठक के आयोजन में शिवसेना नेता संजय राउत की भूमिका भी कम नहीं है। संजय राउत शिवसेना से राज्यसभा सदस्य और पार्टी मुखपत्र सामना के कार्यकारी संपादक हैं। वे पार्टी के मुख्य प्रवक्ता भी हैं।
अक्टूबर 2019 में विधानसभा चुनाव परिणाम आने के बाद शिवसेना के साथ सरकार बनाने के लिए शरद पवार से संवाद साधने की जिम्मेदारी राउत ने ही निभाई थी। शिवसेना नेता के रूप में उभरने से पूर्व पत्रकारिता में लंबी पारी खेल चुके राउत के पवार से पुराने संबंध रहे हैं।
इसी का लाभ लेते हुए राउत ने न सिर्फ स्वयं उस समय तीसरे नंबर पर आई पार्टी के प्रमुख शरद पवार से संबंध साधा, बल्कि उनके जरिए चौथे नंबर पर आई पार्टी कांग्रेस को भी त्रिदलीय सरकार में शामिल होने पर राजी कर लिया।
राउत के प्रयास से महाविकास आघाड़ी सरकार अस्तित्व में आई। चूंकि सरकार के गठन में राउत की भूमिका सराहनीय रही, इसलिए उन्हें इस सरकार का ‘शिल्पकार’ तक कहा जाने लगा। सरकार बनने के बाद राउत को लगने लगा कि यदि कोशिश की जाए तो राष्ट्रीय स्तर पर भी भाजपा के विरुद्ध एक गठजोड़ बनाया जा सकता है।
लेकिन उनकी नजर में इस गठजोड़ का नेतृत्व कांग्रेस नहीं कर सकती। यही कारण है कि वे पिछले कुछ महीनों में दो बार संप्रग का नेतृत्व शरद पवार को सौंपने की बात कर चुके हैं। यह प्रस्ताव देते हुए एक बार तो वे कांग्रेस नेतृत्व पर भी सवाल उठा चुके हैं।
चूंकि शिवसेना संप्रग की सदस्य नहीं है, इसलिए इस प्रस्ताव पर कांग्रेस नेताओं ने ही उन्हें झिड़क दिया था। दरअसल राउत का मानना है कि विभिन्न राज्यों के ज्यादातर क्षेत्रीय दल केंद्र की राजनीति में पवार का नेतृत्व स्वीकार कर एक छतरी के नीचे आ सकते हैं। इसलिए वे पवार को संप्रग का नेतृत्व सौंपने की वकालत कर रहे थे।
जब उन्हें और पवार को यह अहसास हो गया कि कांग्रेस संप्रग का नेतृत्व छोड़ने को तैयार नहीं होगी, तो प्रशांत किशोर व यशवंत सिन्हा को आगे कर राष्ट्रमंच पर गैरभाजपा व गैरकांग्रेसी दलों को जमा करने की कोशिश शुरू की गई।


