नई दिल्ली : शनिवार को अंतरराष्ट्रीय मीडिया में काबुल में तैनात तालिबान आतंकियों का एक फोटो जारी किया गया है जिससे पता चलता है कि अफगानिस्तान में इस बार तालिबान के हाथ क्या-क्या लगा है। इस फोटो में तालिबान आतंकी अमेरिकी सेना के ड्रेस, जूते, टोपी पहने हुए हैं।
एक दिन पहले तक तालिबान के आतंकी पुराने मैले-कुचैले कपड़ों और फटे जूतों में काबुल की ट्रैफिक को व्यवस्थित करने में जुटे थे। अब उनके पास अमेरिका के छोड़े गए कपड़े ही नहीं बल्कि उनके अत्याधुनिक हथियार, हेलीकाप्टर और बख्तरबंद गाड़ियां भी हैं।
तालिबान ने ढाई दशक पहले जब अफगानिस्तान पर कब्जा जमाया था तब वह सोवियत संघ की सेना और अमेरिकी समर्थन से तैयार मुजाहिदीनों के बीच लड़ाई में बर्बाद के कगार पर था। वैसे आर्थिक दृष्टिकोण से अभी भी अफगानिस्तान की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है।
वहां चाहे जिसकी भी सरकार बने उसे देश चलाने के लिए आवश्यक आर्थिक संसाधनों की भारी कमी का सामना करना होगा। इसके बावजूद हालात पहले के मुकाबले काफी बेहतर हैं। इस बार जिस तरह से तालिबान को चीन की तरफ से साफ तौर पर मदद मिलने के संकेत हैं उसका भी फायदा तालिबान को होगा। माना जा रहा है कि चीन की नजर अफगानिस्तान के विशाल खनिज भंडार पर है।
काबुल से जो सूचनाएं आ रही हैं उसके मुताबिक अमेरिकी सेना वहां से वापसी के दौरान अपने तमाम भारी भरकम व अत्याधुनिक सैन्य साजो सामान को या तो ले गई है या फिर उनमें तकनीकी खामी पैदा करके छोड़ा है ताकि उनका इस्तेमाल नहीं किया जा सके।
इसके बावजूद अफगानी सेना को दिए गए अत्याधुनिक असाल्ट राइफल्स, रात में देखे जाने वाले चश्मे, सैनिकों के बीच आपसी संपर्क के लिए आपसी संचार व्यवस्था, भारी समानों की ढुलाई में इस्तेमाल होने वाले ट्रक व सैकड़ों बख्तरबंद गाड़ियां हैं जिन्हें आसानी से तालिबान इस्तेमाल कर सकते हैं।
अमेरिका ने 150 विमान दिए थे सूचना यह आ रही है कि तालिबान इनका इस्तेमाल भी करने लगे हैं। अमेरिका की स्पेशल इंस्पेक्टर जनरल आफ अफगानिस्तान रिकंस्ट्रक्शन की पिछले हफ्ते की रिपोर्ट बताती है कि अफगान आर्मी को अभी तक कुल 150 विमान दिए गए हैं। इनमें चार बडे ट्रांसपोर्ट कैरियर, 45 यूएच-60 ब्लैक हाक हेलीकाप्टर, जमीन पर सटीक हमला करने वाले 23 सुपर टुकानो हेलीकाप्टर शामिल हैं।
तालिबान आतंकी इन्हें आपरेट तो नहीं कर सकते क्योंकि इसके लिए महीनों की ट्रेनिंग व दक्षता चाहिए लेकिन तालिबान अगर इन्हें चलाने वाले अफगानी आर्मी के पूर्व सैन्यकर्मियों को तैयार कर लेते हैं तो वह इन्हें अपने इशारे पर इस्तेमाल कर सकते हैं। खनिज भंडार पर चीन की नजर कई अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों ने पिछले कुछ दिनों में यह लिखा है कि चीन की नजर अफगानिस्तान के विशाल खनिज भंडारों पर है।
वैसे पिछले 10 वर्षों के दौरान कुछ भारतीय कंपनियों ने भी अफगानिस्तान के खनिज भंडार में शुरुआती दिलचस्पी दिखाई लेकिन इस बारे में दोनों देशों की सरकारों के बीच खास बात नहीं हो सकी। पूर्व राष्ट्रपति ट्रंप के आने के बाद भारतीय कंपनियों ने भी अफगान के खनन क्षेत्र में दिलचस्पी लेनी छोड़ दी थी। एक अनुमान के मुताबिक अफगानिस्तान के पास तांबा, सोना, बाक्साइट, लौह-अयस्क, जिंक, सल्फर, कोबाल्ट आदि का बड़ा भंडार है। मोटे तौर पर इनका बाजार मूल्य 3,000 अरब डालर लगाया जाता है।
माना जाता है कि अफगानिस्तान में कच्चे तेल का भी बड़ा भंडार हो सकता है क्योंकि इसके पड़ोसी देश ईरान व ताजिकिस्तान में भी बड़े क्रूड व गैस भंडार हैं। अब यह अलग बात होगी कि तालिबान मानसिकता से इनका दोहन किया जा सकेगा या नहीं।