भोपाल : इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय भोपाल द्वारा संग्रहालय भ्रमण पर आने वाले दर्शकों की मांग पर भील जनजाति के पारंपरिक भोजन कार्यक्रम जायका की शुरूआत की गयी है। इस भोजन को भोपाल शहर के भोजन प्रेमी लोगों ने काफी पसंद किया है। इस संबंध में निदेशक डॉ. प्रवीण कुमार मिश्र ने बताया कि पिछले दो दशकों में विश्व के तमाम बड़े वैज्ञानिकों ने अपने शोध से ये साबित भी किया है कि जनजातियों के प्राकृतिक आहार को यदि आज की भाग-दौड़ भरी जिंदगी में लोग अपना लें,
तो पोषक तत्वों की कमी से होने वाले अनेक रोगों की छुट्टी हो सकती है। मक्के की रोटी का सेवन करने से हमारे शरीर को फाइबर प्राप्त होता है, जो पाचन संबंधी समस्याओं से राहत पाने में मदद करता है। यह शरीर में कॉलेस्ट्रॉल के स्तर को नियंत्रित करने में भी मदद करता है। साथ ही फाइबर युक्त आहार लंबे समय तक पेट भरा रखने में मदद करता है।
संग्रहालय की केंटिन मे प्रत्येक शनिवार एवं रविवार को दोपहर 1 बजे से 4 बजे के मध्य स्वाद प्रेमियों के लिए मध्यप्रदेश के भील जनजाति का पारंपरिक भोजन मक्का की रोटी, बैगन का भुर्ता, धनिया, लेहसुन की चटनी, गुड आदि पारंपरिक व्यंजनों का स्वाद चखने का अवसर उपलब्ध है।