आतंकवाद को नहीं, आतंकियों को निशाना बनाया; भारत का रक्षा निर्यात 24,000 करोड़ पार , 2029 तक 50,000 करोड़ का लक्ष्य: रक्षा मंत्री

हैदराबाद, 3 अक्टूबर 2025 (PIB दिल्ली) : रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि भारत ने हमेशा आतंकवाद के खिलाफ सख्त रुख अपनाया है और कभी नागरिकों या सैन्य प्रतिष्ठानों को निशाना नहीं बनाया। वे जैन इंटरनेशनल ट्रेड कम्युनिटी (जेआईटीओ) के कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे।


आतंकवाद पर स्पष्ट संदेश : रक्षा मंत्री ने 2016 की सर्जिकल स्ट्राइक, 2019 की बालाकोट एयर स्ट्राइक और हाल ही में हुए ऑपरेशन सिंदूर का उल्लेख करते हुए कहा कि ये भारत की सुरक्षा और संप्रभुता की रक्षा के प्रति अटूट संकल्प का उदाहरण हैं। उन्होंने कहा, “जब पहलगाम आतंकी हमले का जवाब दिया गया तो आतंकवादियों का धर्म नहीं देखा गया। हमने केवल आतंकवाद को निशाना बनाया।”


रक्षा निर्यात में रिकॉर्ड वृद्धि : कार्यक्रम में उन्होंने बताया कि भारत का रक्षा निर्यात 2014 में 600 करोड़ रुपये से बढ़कर 2025 में 24,000 करोड़ रुपये हो गया है। वर्ष 2029 तक इसे 50,000 करोड़ रुपये तक पहुंचाने का लक्ष्य रखा गया है। तेजस लड़ाकू विमान, आकाश मिसाइल और अर्जुन टैंक जैसे प्लेटफार्म अब तेजी से भारतीय रक्षा बलों को सुसज्जित कर रहे हैं।


आत्मनिर्भरता की ओर कदम : उन्होंने हाल ही में हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) से 97 हल्के लड़ाकू विमानों की खरीद के समझौते का भी जिक्र किया, जिसमें 64% से अधिक स्वदेशी सामग्री का उपयोग है। सिंह ने कहा कि भारत अब “खिलौनों से लेकर टैंकों तक” सब कुछ स्वयं बना रहा है और तेजी से वैश्विक विनिर्माण केंद्र के रूप में उभर रहा है।


भारत की आर्थिक प्रगति : अपने भाषण में उन्होंने बताया कि भारत वर्तमान में दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और 2030 तक 7.3 ट्रिलियन डॉलर जीडीपी के साथ तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की राह पर है। IMF की रिपोर्टों के आधार पर उन्होंने कहा कि 2038 तक भारत क्रय शक्ति समता (PPP) के आधार पर दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन सकता है।


जैन समुदाय और सांस्कृतिक मूल्यों का उल्लेख : राजनाथ सिंह ने डॉ. विक्रम साराभाई और डॉ. डी.एस. कोठारी जैसी महान हस्तियों को याद किया और कहा कि जैन परंपरा के मूल्य आज भी राष्ट्र को प्रेरणा देते हैं। उन्होंने सरकार के उस प्रयास का उल्लेख किया जिसमें 20 से अधिक चुराई गई जैन मूर्तियों को विदेशों से वापस लाया गया है और प्राकृत भाषा को शास्त्रीय भाषा का दर्जा दिया गया है।

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