नई दिल्ली : कोविड-19 महामारी ने टीके के अनुसंधान और विकास के लिए वैश्विक सहयोग के महत्व को बताया है। जैसा की शताब्दी में एक बार आने वाले इस सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट को हमने विशेष रूप से उभरते रोगाणुओं के टीके के विकास की दिशा में अनुसंधान के महत्व को समझा है। केंद्रीय रसायन एवं खाद्य और स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री डॉ. मनसुख मांडविया ने “वैक्सीन अनुसंधान और विकास: भविष्य की स्वास्थ्य आपात स्थितियों की रोकथाम तैयारी और प्रतिक्रिया के लिए आम सहमति: पर वैश्विक वैक्सीन अनुसंधान सहयोगात्मक चर्चा को संबोधित करते हुए यह बात कही। आज सिकंदराबाद में तीसरी जी-20 स्वास्थ्य सेवा समूह की बैठक के दौरान, भारत सरकार के फार्मास्यूटिकल्स विभाग ने जी-20 अध्यक्षता के तहत एक सह-कार्यक्रम का आयोजन किया।.
इस अवसर पर अपने संबोधन में डॉ मांडविया ने कहा कि ग्लोबल वैक्सीन रिसर्च कोलैबोरेटिव (वैश्विक वैक्सीन अनुसंधान सहयोग) उभरते रोगजनकों के लिए वैक्सीन अनुसंधान और विकास को आगे बढ़ाने के लिए आवश्यक तंत्र हो सकता है। उन्होंने कहा कि ‘यदि हम इस महत्वपूर्ण मिशन की ओर बढ़ते हैं, तो हमें वैश्विक स्वास्थ्य समुदाय के विशेषज्ञों की सेवाओं का लाभ और महामारी से बचाव के प्रयासों को मजबूत करना चाहिए’’। उन्होंने आगे कहा कि ‘‘उभरते रोगजनकों के लिए टीके के विकास को गति देने के लिए अंतर्राष्ट्रीय सहयोग आवश्यक है और जी-20 प्लेटफॉर्म सरकारों, अनुसंधान संगठनों, दवा निर्माता कंपनियों और और अन्य भागीदारों के बीच सहयोग को बढ़ावा देने के लिए एक महत्वपूर्ण मंच की भूमिका निभाता है।’’
मनसुख मांडविया ने कहा पोलियो, चेचक और खसरा जैसी बीमारियों के लिए टीकों के विकास, उत्पादन और वितरण में अनुभव के साथ कई दशकों तक वैक्सीन अनुसंधान और विकास में भारत के नेतृत्व पर प्रकाश डालते हुए, केंद्रीय मंत्री ने कहा कि भारत, वैक्सीन उत्पादन और वितरण में एक अग्रणी खिलाड़ी के रूप में, कर सकता है। “प्रभावी टीकों के विकास और वितरण द्वारा महामारी के प्रभाव को कम करने में मदद की जा सकती है, और हमें इस उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए अनुसंधान प्रयासों को प्राथमिकता देनी चाहिए” वैक्सीन उत्पादन और वितरण को बढ़ावा देने के लिए भारत की पहल पर विस्तार से बताते हुए, केंद्रीय मंत्री ने कहा कि “सरकार ने अपनी उत्पादन क्षमता बढ़ाने हेतु वैक्सीन निर्माताओं को प्रोत्साहित करने के लिए वित्तीय प्रोत्साहन और सुव्यवस्थित नियामक प्रक्रियाएं प्रदान की हैं। इसने प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों और अन्य स्वास्थ्य सुविधाओं के मौजूदा बुनियादी ढांचे का लाभ उठाकर ग्रामीण क्षेत्रों में टीकों की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए भी कदम उठाए हैं।
महामारी की तैयारी, दवाओं और टीकों तक पहुंच, और सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज सहित स्वास्थ्य प्राथमिकताओं को आगे बढ़ाने के लिए भारत की प्रतिबद्धता को दोहराते हुए, डॉ मंडाविया ने कहा कि “हमें इन क्षेत्रों में भारत के अनुभव का लाभ उठाना चाहिए और विशेष रूप से उभरते और महामारी-संभावित रोगजनकों के लिए टीके के विकास में तेजी लानी चाहिए” उन्होंने कहा कि “कोविड-19 टीकों के उत्पादन और वितरण में भारत का नेतृत्व वैश्विक स्वास्थ्य सुरक्षा के प्रति हमारी प्रतिबद्धता का प्रमाण है।” उन्होंने आगे कहा कि “हम मानते हैं कि वैक्सीन वितरण की समानता आवश्यक है, और हम यह सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध हैं कि आय या राष्ट्रीयता के भेदभाव के बिना, जीवन रक्षक टीकों तक सबकी पहुंच हो’’
केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव, राजेश भूषण ने कहा कि भारत परंपरागत रूप से जेनेरिक और बायोसिमिलर श्रेणी में विश्व में अग्रणी रहा है और प्रमुख भारतीय वैक्सीन निर्माता वैश्विक वैक्सीन आपूर्ति में 50% से अधिक का योगदान करते हैं, उन्होंने कहा कि कोविड-19 महामारी ने दशकों से वैक्सीन निर्माण की समय-सीमा को एक साल से भी कम करने की आवश्यकता को रेखांकित किया है। उन्होंने कहा कि “महामारी के दौरान मिली सीख को एक ऐसी प्रणाली में परिवर्तित करने की आवश्यकता है।
वैश्विक वैक्सीन अनुसंधान सहयोग, की आवश्यकता को स्वीकार करते हुए, फार्मास्युटिकल्स विभाग की सचिव, एस. अपर्णा ने कहा कि कोविड-19 महामारी ने यह बताया है कि वैक्सीन वितरण में असमानता ने कारण दुनिया में कुछ देशों को 18 महीने बाद यह टीका प्राप्त हुआ। उन्होंने कहा कि “वैश्विक टीका अनुसंधान सहयोग की मूल भावना के इस असमानता को सामने लाना और वैश्विक मंच पर एक समान टीका वितरण प्रणाली सुनिश्चित करना है।’’ उन्होंने आगे कहा, “यह मूल्यवान संसाधनों को अनुकूलित करने और दोहराव से बचने में भी मदद करेगा।”
तेलंगाना सरकार के प्रधान सचिव जयेश रंजन, ने बताया कि हैदराबाद में हर साल 9 बिलियन वैक्सीन डोज का उत्पादन किया जाता है, जो हर साल उत्पादित कुल टीकों के एक तिहाई के बराबर है। उन्होंने कहा कि भारत का पहला स्वदेशी कोविड-19 वैक्सीन, कोवैक्सीन पूरी तरह से हैदराबाद में शोध और उत्पादित किया गया था, जबकि स्पुतनिक जैसे अन्य विश्व प्रसिद्ध टीके भी हैदराबाद में किए गए अनुसंधान और विकास का हिस्सा है।