नोएडा : भारत सरकार ने बुधवार को यह स्पष्ट किया कि कोरोना वायरस के नए स्ट्रेन बी.1.617 के लिए ‘इंडियान वैरिएंट’ यानी भारतीय स्वरूप शब्द का इस्तेमाल आधारहीन है और इसके पीछे कोई तथ्य नहीं है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने भी इसे यह नहीं दिया है, बल्कि उसने इसे चिंताजनक स्वरूप बताया है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा कि डब्ल्यूएचओ ने अपने साप्ताहिक महामारी विज्ञान अपडेट में बी.1.617 स्ट्रेन को चिंताजनक स्वरूप (वैरिएंट ऑफ ग्लोबल कंसर्न) बताया है। सच्चाई यह है कि डब्ल्यूएचओ ने अपनी 32 पेज की रिपोर्ट में कहीं भी ‘इंडियन’ शब्द का इस्तेमाल ही नहीं किया है। सरकार ने कहा कि डब्ल्यूएचओ की खबर की रिपोर्टिंग में मीडिया ने अपनी तरफ से ‘इंडियन वैरिएंट’ यानी भारतीय स्वरूप शब्द गढ़ा है, जिसका कोई आधार नहीं है। इससे पहले, डब्ल्यूएचओ ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि भारत में पिछले साल पहली बार सामने आया कोरोना वायरस का बी.1.617 स्वरूप 44 देशों में पाया गया है और यह ‘स्वरूप चिंताजनक’ है। चिंताजनक स्वरूप वे होते हैं जिन्हें वायरस के मूल रूप से कहीं अधिक खतरनाक माना जाता है। कोरोना वायरस का मूल स्वरूप पहली बार 2019 के अंतिम महीनों में चीन में पाया गया था। वायरस के किसी भी स्वरूप में पैदा होने वाले खतरे में ज्यादा संक्रमण फैलने की आशंका, ज्यादा घातकता और टीकों से बनने वाले प्रतिरोधक क्षमता को मात देना शामिल होता है।
डब्ल्यूएचओ के मुताबिक बी.1.617 में संक्रमण फैलने की दर अधिक है। उसने यह भी कहा, ‘प्रारंभिक सुबूत से पता चला है कि इस स्वरूप में कोविड-19 के इलाज में इस्तेमाल मोनोक्लोनल एंटीबॉडी ‘बालमैनिविमैब’ की प्रभाव क्षमता घट जाती है।
पिछले साल अक्टूबर में मिला था नया वैरिएंट कोरोना वायरस का बी.1.617 स्वरूप भारत में सबसे पहले पिछले साल अक्टूबर पाया गया था। इसे डबल म्यूटेंट भी कहा गया। देश में कोरोना संक्रमण के बढ़ते मामलों और मौतों ने इस स्वरूप की भूमिका को लेकर सवाल खड़े कर दिए हैं।