अहमदाबाद. गुजरात की राजनीति के ‘बापा’ कहे जाने वाले पूर्व मुख्यमंत्री केशुभाई पटेल ने आज इस दुनिया को अलविदा कह दिया है। दिल का दौरा पड़ने से उनका निधन हुआ है। गुजरात में उन्हें लोग बापा के नाम से जानते थे। केशु भाई और नरेंद्र मोदी के बीच सियासी रिश्तों में कई बार उतार चढ़ाव आए, लेकिन नरेंद्र मोदी ने हमेशा उनका आशीर्वाद लिया। पहली बार वर्ष 1995 में गुजरात का सीएम पद संभाला था। इसके बाद वह 1998 से वर्ष 2001 तक दूसरी बार मुख्यमंत्री पद पर काबिज़ हुए। हालांकि साल 2001 में उनकी जगह नरेंद्र मोदी ने सीएम पद की शपथ ली थी।

जबकेशु भाई को पहला झटका लगा
केशुभाई पटेल को जीवन का पहला झटका तब लगा जब उनके साथ के नेता शंकर सिंह वाघेला ने 40 विधायकों को तोड़कर उनकी सरकार गिरा दी थी। कहा जाता है कि केशुभाई पटेल, नरेंद्र मोदी, शंकर सिंह वाघेला और काशी राम राणा गुजरात की सियासत के चार स्तंभ थे। उस वक्त गुजरात की सियासत इन चार प्रमुखों के इर्द गिर्द ही थी। जब शंकर सिंह वाघेला ने उनकी सरकार गिराई तो उन्हें गहरा आघात पहुंचा।

केशुभाई की जगह नरेंद्र को सौंपी गई गुजरात की गद्दी
सन 2000 में गुजरात में आए भूकंप के बाद उपचुनाव और पंचायत चुनाव में बीजेपी को करारी शिकस्त मिली। केशुभाई को गद्दी से ये कहकर हटा दिया गया कि भूकंप के बाद वे बेहतर काम नहीं कर पाए। इसकी पार्टी आलाकमान ने नरेंद्र मोदी को गुजरात की गद्दी सौंपने का फैसला लिया और गुजरात में नरेंद्र मोदी को पार्टी का अहम चेहरा माना जाने लगा।
जब नरेंद्र मोदी के खिलाफ किया गया था का ऐलान
2007 में सूरत में एक जगह नरेंद्र मोदी के खिलाफ बिना नाम लिए हल्ला बोला। यही नहीं उन्होंने नरेंद्र मोदी के खिलाफ रैली का भी ऐलान किया। हालांकि उस रैली में वे खुद भी नहीं गए। कहा जाता है कि नरेंद्र मोदी के साथ उनका कई बार मतभेद देखा गया लेकिन कभी कोई भेदभाव नहीं हुआ।
2012 में अपनी पार्टी बनाई
बीजेपी में अपनी सियासी जमीन खिसकती देख दुखी होकर केशुभाई ने 2012 में अपनी ‘गुजरात परिवर्तन पार्टी’ बनाई। हालांकि प्रदेश में उनकी पार्टी बहुत कुछ नहीं कर पाई और चुनाव में उनकी पार्टी के बस कुछ ही विधायक चुने गए। बाद में उन्होंने अपनी पार्टी का बीजेपी में विलय कर दिया।
जब कहावत काम से गलत साबित हुआ
उत्तर गुजरात, सौराष्ट्र और कच्छ में पानी की बड़ी समस्या थी। उस वक्त वहाँ एक कहावत कही जाती थी, “सौराष्ट्र मा सोडा मडे पान पानी नहीं” इसका मतलब ये था कि सौराष्ट्र में सोडा मिल सकता है लेकिन पीने के लिए पानी नहीं मिल सकता है। इस कहावत को गलत साबित करने के लिए वे चेक डैम बनाने की योजना के तहत जल क्रांति लेकर आए। इसके बाद उन्होंने पानी को लेकर कई योजानाओं को शुरू की जिन्हें बाद में नरेंद्र मोदी ने बतौर मुख्यंत्री आगे बढ़ा दिया।
शिक्षा के क्षेत्र में लाए बड़ी क्रांति
2014 में मोदी सूरत आए थे जहां वात्सल्य धाम जहां बेसहारा बच्चों को केशू भाई ने हर क्लास में जाकर लेक्चर दिया था। केशु भाई किताबों से नहीं बल्कि बच्चों को नैतिक शिक्षा देते थे। बच्चों को जीवन जीने का सही तरीका सिखाना था। इसके अलावा उन्होंने भूतिया वर्ग को भी खत्म कर दिया। दरअसल कई स्कूलों को सरकारी परमिशन के सात फंड्स थे, जिसमें बाद में भ्रष्टाचार की खबरें आने लगीं। इस पर बड़ा एक्शन लेते हुए उन्होंने तत्कालीन शिक्षा मंत्री आनंदी बेन पटेल को नि: शुल्क सप्ताह दिया और इसे बंद कर दिया।
दो भागों में बंटे पटेल समाज को एक किया
गुजरात में पटेल समाज दो भागों में बंटा था एक लेउआ पटेल और एक कड़वा पटेल था। केशु भाई ने इन दोनों को एक करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। भी केवल कन्या भ्रूण हत्या पर भी खूब काम हुआ। 90 के दशक में उन्होंने मेल-फीमेल के कम होने वाले रेशियो पर काफी काम किया। एक बार उन्होंने एक सभा का आयोजन लगभग 15 लाख पाटीदार समाज के लोगों को करने के लिए कन्या भ्रूण हत्या नहीं करने को लेकर संकल्प दिलाया।
दूर-दूर से सुनने आने वाले लोग थे
80 के दशक की बात है जब अटल बिहारी वाजपेयी, लाल कृष्ण आडवाणी के साथ केशु भाई रैली करते थे तो लोग केशु भाई को लोग दूर-दूर से सुनने आते थे। यहां तक कि लोग अहमदाबाद से महसाणा तक उनकी भाषण सुनने के लिए पहुंचते थे। कहा जाता है कि उनके भाषण में एक धार हुआ करती थी।
ओक्टोवेआ को किया खत्म
सन 2000 में व्यापारियों से जुड़ी एक बड़ी समस्या को हल किया गया था। दरअसल पहले गुजरात में एक शहर से दूसरे शहर सामान लाने पर एक तरह का टैक्स लिया जाता था, जिसे ओक्ट्रॉए के नाम जाना जाता था। इसमें व्यापारियों को कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता था, साथ ही शहर के बाहर लंबी जाम भी लग जाती थी। केशु भाई ने गुजरात से ओक्ट्रॉए को पूरी तरह से खत्म कर व्यापारियों को बड़ा तोहफा दिया था।