नईदिल्ली : बॉलीवुड अभिनेता इमरान हाशमी को हॉरर फिल्में आकर्षित करती हैं, यही वजह है कि वह बॉलीवुड में उस विधा को फिर से परिभाषित करने की कोशिश कर रहे फिल्मकारों के साथ काम करने के लिए इच्छुक हैं।विक्रम भट्ट की 2002 की हॉरर ब्लॉकबस्टर फिल्म‘राज’ से बतौर सहायक निर्देशक हिंदी फिल्म उद्योग में अपनी यात्रा शुरू करने वाले 42 वर्षीय अभिनेता ने कहाकि वह भारत में इस विधा के विकास में योगदान देने की पूरी कोशिश करते हैं।
हाशमी ने कहाकि मैं बचपन से ही हॉरर फिल्मों का शौकीन रहा हूं। मैं बहुत अधिक डरावनी फिल्में देखता था और अब भी ऐसा करता हूं। यदि मुझे कोई फिल्म देखने का मन होता है तो यह मेरी पहली पसंद है। मैं ड्रामा या कॉमेडी आधारित फिल्म देखने जाने से पहले एक डरावनी फिल्म चुनूंगा। हॉरर एक विधा है जिसे मैं पसंद करता हूं और मैं इससे रोमांचित होता हूं।
साल 2003 की थ्रिलर मूवी ‘फुटपाथ’ के साथ बतौर अभिनेता अपने कैरियर की शुरुआत करने के बाद से, हाशमी ‘राज – द मिस्ट्री कंटीन्यूज़’, ‘राज 3’, ‘एक थी डायन’ और ‘राज: रिबूट’ जैसी हॉरर फिल्मों में भी दिखाई दिए।अभिनेता ने कहाकि उन्होंने ‘द एक्सॉर्सिस्ट’, ‘द ओमेन’, ‘पोल्टरजिस्ट’ से लेकर ‘द शाइनिंग’ जैसी अधिकांश प्रतिष्ठित हॉरर फिल्में देखी हैं, और वह अभी भी न केवल हॉलीवुड की डरावनी फिल्मों, बल्कि अन्य अंतरराष्ट्रीय भाषाओं की ऐसी फिल्में देखने के शौकीन हैं।रामसे ब्रदर्स की फिल्में कुछ ऐसी हैं, जिनका वह बचपन में आनंद लेते थे, लेकिन पीछे मुड़कर देखने पर पता चलता है कि हिंदी हॉरर फिल्मों की असफलता का सबसे प्रमुख कारण सौंदर्यशास्त्र की कमी है।बॉलीवुड अभिनेता ने कहाकि हॉलीवुड या अन्य विदेशी भाषाओं की तुलना में, हम बिल्कुल भी डरावनी फिल्में नहीं बनाते हैं। कुछ वर्षों में ऐसी एकाध फिल्म ही बनती हैं।
आमतौर पर, सौंदर्यशास्त्र एक ऐसी चीज है जिसकी हमारे पास कमी है। उदाहरण के लिए एक बच्चे के तौर पर मेरे लिए ‘रामसे ब्रदर्स’ की फिल्में मनोरंजक होती थीं, लेकिन जब मैं पीछे मुड़कर देखता हूं, तो मुझे अहसास होता है कि उनमें बड़े पैमाने पर दर्शकों को आकर्षित करने के लिए सौंदर्यशास्त्र की कमी थी।
उन्होंने कहाकि इसके अलावा बहुत से अभिनेता हॉरर फिल्मों में अभिनय नहीं करना चाहते हैं। शायद वे इस विधा को नहीं समझते हैं या इसके शौकीन नहीं होते हैं। परंतु मुझे यह शैली पसंद है, इसलिए मैं इसमें काम करता हूं। पांच साल बाद ‘डायबुक’ के साथ इस शैली में वापसी कर रहे अभिनेता ने कहा कि निर्देशक जय की अनूठी दृष्टि ने उन्हें इस परियोजना के लिए हामी भरने को मजबूर कर दिया। फिल्म एक ऐसे जोड़े के इर्द-गिर्द घूमती है,

जो एक पुराना बॉक्स खरीदने के बाद अपने नए घर में अजीब तरह की गतिविधियां महसूस करते हैं।अभिनेता ने कहाकि यह निर्देशक की नई व्याख्या है कि डरावनी फिल्में कैसी होनी चाहिए। एक ऐसे देश में जहां हमने वास्तव में डरावनी फिल्में प्रभावी ढंग से नहीं बनाई है, ऐसे में जय की बहुत गहरी नजर है और डरावनी फिल्मों के प्रति बहुत अलग और प्रभावी दृष्टिकोण भी है। ‘डायबुक’ जय की 2017 की मलयालम ब्लॉकबस्टर ‘एजरा’ की आधिकारिक रीमेक है, जिसमें पृथ्वीराज सुकुमारन, प्रिया आनंद और टोविनो थॉमस ने अभिनय किया था।