प्रयागराज । श्रृंगवेरपुर और फाफामऊ में गंगा तीरे रेती में दफन शवों पर रखे गए उड़ते कफन और हमलावर हुए आवारा कुत्तों ने धर्म-अध्यात्म के लिए विख्यात संगमनगरी के इंतजामों को देश-विदेश में आलोचनाओं का केंद्र बना दिया है। इंटरनेट मीडिया के विभिन्न प्लेटफार्मों पर सक्रिय लोग इसके जरिए मोदी-योगी सरकार पर हमलावर हैं। प्रशासन भी हरकत में आ गया है। बुधवार को दफन स्थल के आसपास गाड़े गए बांस के टुकड़े हटवाए गए। श्रृंगवेरपुर के साथ ही फाफामऊ में अंत्येष्टि के लिए घाट हैं, लेकिन कतिपय सनातनी परिवारों में शवों को गंगा किनारे रेती में दफनाने की भी परंपरा है।
आर्थिक मजबूरी भी इसकी वजह बनती है। प्रतापगढ़, जौनपुर तक के लोग भी शव लेकर दफनाने पहुंचते हैं। अप्रैल-मई में कोरोना के चलते हुई बेतहाशा मौतों के कारण यहां बड़ी संख्या में शव दफनाए गए। दो दिनों में कुछ शवों को कुत्तों द्वारा रेत खोद बाहर खींच निकालने और नोचने की घटनाएं इंटरनेट मीडिया पर वायरल हुईं हैं। अब प्रशासन और पुलिस की टीम सक्रिय है। दाह संस्कार का खर्च उठा रहा प्रशासन, पुलिस और एनडीआरएफ टीम लगातार निगरानी कर रही है। शव दफनाने के लिए आए लोगों को समझाकर दाह संस्कार के लिए भेजा जा रहा है।
शहरी क्षेत्र में जिन लोगों के पास पैसे नहीं है, उन्हें नगर निगम चार हजार रुपये दे रहा है। धनराशि तत्काल दी जा रही है। ग्रामीण क्षेत्रों में पांच हजार रुपये दिए जा रहे हैं। ग्राम विकास अधिकारी को इसकी जिम्मेदारी दी गई है। इस संबंध में प्रशासनिक अधिकारियों का कहना है कि तमाम लोग परंपराओं का हवाला देते हैं शव दफन करने के लिए। हम उनसे अनुरोध कर रहे हैं कि वो दाह संस्कार करें। इसका असर भी पड़ रहा है। सभी तहसीलों के एसडीएम को सक्रिय कर दिया गया है।
वहीं सनातन धर्म के संत और पीठाधीश्वर का कहना है कि सनातन धर्मावलंबियों को पार्थिव शरीर गाड़ना अथवा नदी में प्रवाहित नहीं करना चाहिए। इससे आत्मा भटकती रहती है। सिर्फ पांच साल तक के बच्चे और धर्माचार्यों को ही भू अथवा जल समाधि देने की परंपरा है। अग्नि देवता होते हैं। अग्नि में तारने की शक्ति होती है। निर्णय सिंधु, धर्म सिंधु, अंत्येष्टि क्रिया के सर्वोत्तम ग्रंथ ‘श्राद्ध प्रकाश’ में पार्थिव शरीर को जलाने का विधान बताया गया है। रेत में शव दफनाने से बचना चाहिए।