Datia News : दतिया । लोकतंत्र में ना तो कोई रियासत है और ना ही संवैधानिक रुप से कोई राजा महाराजा है। ऐसे में राज्यभिषेक जैसे कार्यक्रम सार्वजनिक तौर पर किए जाने को लेकर सवाल खड़े होना भी स्वभाविक है। वैसे भी भारत देश लोकतांत्रिक गणराज्य है। जिसके संविधान में भी राजाशाही जैसी व्यवस्था का कहीं उल्लेख नहीं है। अब सवाल उठता है कि फिर राज्याभिषेक जैसे आयोजन कैसे?
इसे लेकर आम धारणा है कि राजघराने अपनी परंपरा निर्वहन के लिए उत्तराधिकार देने की रस्म अदायगी निजी तौर पर करते हैं। लेकिन इसमें भी वह पीढ़ियों से चली आ रही अपनी परंपराओं को प्राथमिकता देते हैं।

वहीं इस मामले में दतिया राजवंश से जुड़ा मामला विवादों में आ गया है। जहां राज परिवार के दो पक्षों में महाराज की पदवी को लेकर टकराव बढ़ गया है।
यह विवाद तब और बढ़ा जब राजवंश की परंपरा से हटकर एक बार फिर नए महाराज के राज्याभिषेक का सार्वजनिक कार्यक्रम छह अप्रैल को दतिया के हैरीटेज गार्डन में आयोजित किए जाने के आमंत्रण वितरित कर दिए गए।चित्र में दतिया महाराज गोविंद सिंह अंग्रेज वाइसराय के साथ।
इस मामले में दतिया राजपरिवार के संरक्षक पूर्व विधायक घनश्याम सिंह का कहना है कि यह सब परंपराओं के विपरीत है। साथ ही जब देश में 78 वर्ष पूर्व ही रियासतों के विलय के साथ राजा बनने की परंपरा ही नहीं रही फिर संविधान के विपरीत राज्याभिषेक जैसे सार्वजनिक आयोजन नियम विरुद्ध हैं।

इस पर शासन प्रशासन को संज्ञान लेना चाहिए। वहीं इस कथित राज्याभिषेक कार्यक्रम के विरोध में शनिवार को क्षत्रिय महासभा और करणी सेना ने पुलिस प्रशासन को एक शिकायती पत्र सौंपकर ऐसे आयोजन रद्द कराने की मांग भी उठाई है।
पीढ़ियों पुरानी परंपराओं को तोड़ने की कोशिश : इस पूरे मामले के बारे में राजपरिवार के सदस्य घनश्याम सिंह ने ब्यौरा देते हुए बताया कि रियासत काल में दतिया नरेश स्वर्गीय महाराजा गोविंद सिंह जूदेव के निधन पर परंपरानुसार उनके ज्येष्ठ पुत्र स्वर्गीय महाराजा बलभद्र सिंह जूदेव को दतिया का राजा बनाया गया था।
उनके निधन पश्चात उनके ज्येष्ठ पुत्र स्वर्गीय महाराजा कृष्णसिंह जूदेव को यह उत्तराधिकार मिला। जब कृष्णसिंह का निधन हुआ तो उनके ज्येष्ठ पुत्र स्वर्गीय महाराजा राजेंद्र सिंह जूदेव को यह पदवी मिली।
अप्रैल 2020 में महाराज राजेंद्र सिंह के निधन पर उनके ज्येष्ठ पुत्र अरुणादित्यदेव का राजवंश की परंपरानुसार राजतिलक कर पगड़ी रस्म कर दी गई थी। ऐसे में अब राजपरिवार में 14वें महाराज की पदवी अरुणादित्यदेव को मिली हुई है। जिसे सर्व क्षत्रिय समाज, आमजन और अन्य राजपरिवार भी स्वीकार करते हैं।यह फोटो अप्रैल 2020 का है जब अरुणादित्य जूदेव को दतिया महाराज के रुप में उत्तराधिकार दिया गया था। उस कार्यक्रम में राहुल देव सिंह भी बैठे नजर आ रहे हैं।
वहीं मजेदार बात यह भी रही कि जिस समय अरुणादित्य को महाराज बनाया गया, उस दौरान आयोजित कार्यक्रम में खुद भानेज दामाद राहुलदेव सिंह भी मौजूद थे। जो कार्यक्रम के दौरान खींचे गए फोटोज में नजर आ रहे हैं।
घनश्याम सिंह का कहना है कि जब पांच वर्ष पहले ही राजवंश की परंपरा के तहत नए उत्तराधिकारी का चयन कर लिया गया है, तब इस तरह के राज्याभिषेक की बात सिर्फ पीढ़ियों पुरानी परंपरा को चोट पहुंचाने का कदम है।
इस तरह राजवंश में मिली महाराजा की पदवी : पूर्व विधायक घनश्याम सिंह के अनुसार दतिया रियासत के समय में तत्कालीन महाराज गोविंद सिंह के दो पुत्र बलभद्र सिंह और जसवंत हुए। जिनमें बलभद्र सिंह के ज्येष्ठ होने के कारण उनका राज्याभिषेक किया गया था।
जबकि छोटे पुत्र जसवंत सिंह को रावराजा का खिताब प्रदान कर नदीगांव की जागीर दी गई थी। नदीगांव का किला समेत दतिया, मुम्बई में अनेक बड़ी सम्पत्तियां एवं कृषि भूमि दे दी गई थी। इस तरह ज्येष्ठ पुत्र के वंशजों को क्रमबार राजपरिवार के मुखिया का दर्जा महाराज बनाकर प्रदान किया जाता रहा। जबकि जसंवत सिंह के वंशजों को रावराजा की उपाधि मिलती रही।
घनश्याम सिंह ने बताया कि अब इसी परिवार की चौथी पीढ़ी के भांजे दामाद राहुलदेव सिंह खुद को राजा घोषित करने के लिए सार्वजनिक रुप से राज्याभिषेक करा रहे हैं। जो राजवंश की परंपरा और देश की संवैधानिक व्यवस्था के विपरीत है।
जिस वसीयत को बना रहे आधार वह कूटरचित : वहीं इस मामले में दूसरे पक्ष के राहुलदेव सिंह ने जो खुद के राज्याभिषेक के आमंत्रण बांटे हैं उनमें उल्लेख किया है कि उनकी दादी सास स्वर्गीय पदमाकुमारी जू की वसीयत एवं संदेश के अनुसार यह राज्याभिषेक हो रहा है।
इस मामले में घनश्याम सिंह का आरोप है कि राहुलदेव सिंह जिस वसीयत की बात कर रहे हैं वह कूटरचित है। इसकी जांच होना चाहिए। पूर्व में एक जमीनी मामले में भी वह अपनी दादी सास की एक वसीयत पेश कर चुके हैं। उस वसीयत में राज्याभिषेक जैसा कोई उल्लेख नहीं था।
फिर अचानक से यह बात वसीयत में उल्लेखित कैसे बताई जा रही है। वहीं वर्तमान महाराज अरुणादित्य का कहना है कि भारत में संविधान लागू हो चुका है। ऐसे में कोई स्वंय को रियासत का महाराजा घोषित करे यह संविधान के विपरीत है तथा भारत गणराज्य को चुनौती देना है।