प्रयागराज । महामारी से जूझना और जीतना हम भारतीयों की मानो नियति रही है। कोरोना तो आज है, हमने तब भी मास्क लगाया था जब 1918 में स्पेनिश फ्लू ने हमला बोला था। महात्मा गांधी भी इस बीमारी की चपेट में आए थे। हालांकि वह जल्द ही स्वस्थ हुए थे। उस समय पंडित जवाहरलाल नेहरू ने लोगों से अपील की थी कि महामारी से बचाव के लिए मास्क पहनकर ही घरों से बाहर निकलें। यह वही समय था जब नेहरू सामाजिक और राजनीतिक रूप से सक्रिय हुए थे। इससे पहले 1817 में कालरा (हैजा) जैसी संचारी महामारी को भी हमने शिकस्त दी है।
इसकी सात लहरों ने हमसे करीब डेढ़ करोड़ पूर्वजों को छीन लिया था। कोरोना की तीसरी लहर की आशंका इन दिनों चिंता का सबब बनी है। सरकार तैयारियों में जुटी है और उम्मीद है कि हम इसे भी परास्त कर देंगे। इस उम्मीद के पीछे है महामारियों को दी गई शिकस्त। हमने चेचक, सारस, मेनिनजाइटिस, चिकनगुनिया, पीलिया और निपाह को भी हराया है। कालरा ने स्पेनिश फ्लू से ज्यादा कहर बरपाया था। कोरोना से पहले निपाह खौफ का सबब बना था।
पुराने दस्तावेजों और विभिन्न शोध से जुटाए तथ्यों के आधार पर राजकीय पब्लिक लाइब्रेरी (अल्फ्रेड पार्क) के अध्यक्ष बताते हैं कि देश में कालरा का पहला मामला 23 अगस्त, 1817 को सामने आया था। फिर अलग-अलग दशकों में कालरा (हैजा) की सात लहरें आई थीं। पहली तीन लहरों की शुरुआत भारत से हुई। यह महामारी एशिया के अन्य भागों से होते हुए यूरोप, उत्तरी अमेरिका और अफ्रीका तक पहुंची। भारत में झुग्गी झोपड़ी में रहने वाले ज्यादा प्रभावित हुए थे। यूरोपियन तथा अभिजात्य वर्ग के लोग सबसे कम।
कालरा की लहर क्रमश: 1817 के बाद 1826, 1852, 1860, 1861, 1867 और 1881 में भी आई थी। 1918-19 में स्पेनिश फ्लू (इन्फ्लूएंजा) ने दुनिया भर में तबाही मचाई थी। लगभग 50 करोड़ लोग इससे प्रभावित हुए थे। भारत में ही 1.20 करोड़ लोगों की मौत हो गई थी। यह आंकड़ा उस समय की भारतीय आबादी का छह फीसद था। यह वायरस तेजी से अपना स्वरूप बदलता था। लोगों को सांस लेने में दिक्कत होती थी और संक्रमितों के चेहरे बैंगनी, नीले पड़ जाते थे। मृत्यु के बाद चेहरा काला हो जाता था। हमने इससे बचने को तब भी मास्क लगाया था।
इलाहाबाद विश्वविद्यालय के मध्य कालीन इतिहास विभाग के प्रोफेसर बताते हैं कि मई 1918 में प्रथम विश्व युद्ध से लौटे सैनिकों के साथ स्पेनिश फ्लू मुंबई पहुंचा था। बोलचाल में इसे बंबइया बुखार कहा गया। तब इलाहाबाद मेंे इससे 5,000 लोगों की मौत हुई थी। इससे बचाव की वैक्सीन 1946 में आई। प्लेग ने भी देश में सिहरन फैला दी थी। 1896 में मुंबई की झुग्गी झोपड़ी इसकी शुरुआत हुई थी। इसमें हजारों लोगों की जान चली गई थी। फिर 1994 में सूरत (गुजरात) में भी प्लेग फैला था। वहीं पोलियो ने 1990 के दशक के अंत तक भारत में अपना खासा प्रभाव डाला था। सबसे अधिक प्रभावित राज्यों में उत्तर प्रदेश था।