नई दिल्ली : राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) में बढ़ते वायु प्रदूषण के कई कारकों में पराली जलाना एक महत्वपूर्ण कारण माना जाता है। वाहनों का धुआं, औद्योगिक उत्सर्जन, निर्माण कार्यों की धूल, बायोमास जलाना और लैंडफिल आग जैसी गतिविधियाँ भी प्रदूषण को बढ़ाती हैं। इसी कड़ी में संसद में यह जानकारी दी गई कि पराली जलाने को रोकने के लिए केंद्र सरकार राज्यों के साथ मिलकर कई व्यापक कदम उठा रही है।
2018 से मशीनरी और सब्सिडी पर बड़ा निवेश : कृषि मंत्रालय 2018-19 से फसल अवशेष प्रबंधन (CRM) योजना लागू कर रहा है, जिसके तहत किसानों को मशीनों की खरीद पर 50% सब्सिडी और सहकारी समितियों, पंचायतों व एफपीओ को कस्टम हायरिंग सेंटर स्थापित करने के लिए 80% तक वित्तीय सहायता दी जा रही है।
अब तक पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और दिल्ली को 4,090 करोड़ रुपये से अधिक की राशि जारी की जा चुकी है। इन राज्यों को 3.45 लाख CRM मशीनें उपलब्ध कराई गईं और 43,000 से अधिक कस्टम हायरिंग सेंटर स्थापित किए गए हैं।
पैलेट, टोरीफिकेशन और बायोगैस संयंत्रों के लिए विशेष प्रोत्साहन : CPCB द्वारा पैलेटाइजेशन और टोरीफिकेशन संयंत्रों पर 40% तक वित्तीय सहायता दी जा रही है। इसके साथ ही, ऊर्जा एवं पेट्रोलियम मंत्रालय द्वारा बायोमास आधारित बायो-CNG, बायोगैस, ब्रिकेट, पेलेट उत्पादन को प्रोत्साहित करने के लिए नई योजनाएँ लागू हैं।
“प्रधानमंत्री जी-वन” योजना के जरिए कृषि अवशेषों से जैव ईंधन उत्पादन को भी बढ़ावा दिया जा रहा है।
90% तक घटी आग की घटनाएँ — सीएक्यूएम रिपोर्ट : वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (CAQM) ने राज्यों को लघु व सीमांत किसानों के लिए CRM मशीनें किराया-मुक्त उपलब्ध कराने का निर्देश दिया था। समन्वित प्रयासों के चलते पंजाब और हरियाणा में पराली जलाने की घटनाएँ वर्ष 2025 में लगभग 90% तक घट गईं, जो प्रदूषण कम करने की दिशा में उल्लेखनीय सफलता है।


