भोपाल : भोपाल नगर निगम (BMC) ने स्वच्छ भारत मिशन को साकार करने की दिशा में दो महत्त्वपूर्ण परियोजनाएं आरंभ की हैं, जो कचरा प्रबंधन के क्षेत्र में नवाचार, पर्यावरणीय संतुलन और स्थानीय रोजगार के अवसरों को एक साथ आगे बढ़ा रही हैं। इन पहलों को सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) मॉडल के अंतर्गत लागू किया गया है।
नगर निगम ने “स्वाहा रिसोर्स मैनेजमेंट प्राइवेट लिमिटेड” के सहयोग से एक ग्रीन वेस्ट-टू-बायो ब्रिकेट्स संयंत्र स्थापित किया है। इस संयंत्र में प्रतिदिन लगभग 20 टन उद्यान अपशिष्ट — जैसे सूखी पत्तियाँ, घास और पेड़ों की टहनियाँ — को संसाधित कर बायो-ब्रिकेट्स में परिवर्तित किया जा रहा है। ये ब्रिकेट्स कोयले और लकड़ी जैसे पारंपरिक ईंधनों के पर्यावरण-अनुकूल विकल्प हैं, जिनका उपयोग उद्योगों, व्यावसायिक रसोईघरों और बॉयलर्स में किया जा सकता है। यह पहल न केवल खुले में कचरा जलाने की समस्या को कम करती है, बल्कि स्वच्छ ऊर्जा को भी बढ़ावा देती है।
इसी क्रम में, नगर निगम ने एक थर्मोकोल क्रशिंग और रीसाइक्लिंग प्लांट की भी स्थापना की है। इस संयंत्र में घरेलू और औद्योगिक स्रोतों से एकत्रित थर्मोकोल को छांटकर दबाया जाता है और उससे कंप्रेस्ड ब्लॉक्स तैयार किए जाते हैं। इन ब्लॉक्स का उपयोग निर्माण, इन्सुलेशन और अन्य औद्योगिक क्षेत्रों में किया जा रहा है, जिससे अपशिष्ट का नवोपयोग सुनिश्चित हो रहा है।
स्वच्छता और सस्टेनेबिलिटी के बीच संतुलन स्थापित करने की दिशा में एक और उल्लेखनीय कदम बिट्टन मार्केट क्षेत्र में उठाया गया है, जहां विकेंद्रीकृत बायोडीग्रेडेबल वेस्ट मैनेजमेंट सिस्टम कार्यशील है। इस संयंत्र की दैनिक क्षमता लगभग 5 टन जैविक कचरे के प्रसंस्करण की है। इससे प्रतिदिन 300–350 घन मीटर बायोगैस और 200–300 किलोवाट बिजली उत्पन्न हो रही है, जिसका उपयोग स्थानीय हाई-मास्ट स्ट्रीट लाइट्स को जलाने में किया जा रहा है।
भोपाल नगर निगम की ये पहलें न केवल शहर को स्वच्छ और हरित बना रही हैं, बल्कि टिकाऊ ऊर्जा और हरित अर्थव्यवस्था की दिशा में भी शहर को अग्रणी बना रही हैं। इससे न केवल पर्यावरणीय लाभ मिल रहे हैं, बल्कि स्थानीय नागरिकों के लिए रोजगार और स्वरोजगार के नए अवसर भी पैदा हो रहे हैं।
भोपाल अब एक मॉडल ग्रीन सिटी के रूप में उभर रहा है, और उसकी ये परियोजनाएं अन्य शहरी निकायों के लिए प्रेरणास्रोत बन सकती हैं।


