एक ही जमीन को दो लोगों को बेचा : खरीदार को पता चला तो पहुंचा पुलिस के पास, आरोपित को मिली सजा

दतिया।  एक भूमि को दो जगह विक्रय कर धोखाधड़ी करने वाले आरोपित को तीन वर्ष के सश्रम कारावास की सजा सुनाई गई है। द्वितीय अतिरिक्त न्यायाधीश उत्सव चतुर्वेदी ने आरोपित को दंडित करने की सजा सुनाई है। मामले की पैरवी मुकेश गुप्ता, अपर लोक अभियोजक ने की। 

आरोपित कल्ला उर्फ कल्यान रावत पुत्र रामकिशुन रावत निवासी ग्राम सिजाेरा थाना बड़ौनी को एक ही भूमि के दो विक्रय पत्र जारी कर धोखाधड़ी करने के अपराध में दाेषी पाते हुए धारा 420, 468 एवं 471 के अपराधों में दो-दो वर्ष का सश्रम कारावास एवं 2500-2500 रुपये अर्थदंड तथा धारा 467 के अपराध में तीन वर्ष के सश्रम कारावास एवं 2500 रुपये अर्थदंड इस प्रकार कुल 10 हजार के अर्थदंड से दंडित किया गया। 

प्रकरण के मुताबिक फरियादी चंद्रभान रावत द्वारा पुलिस अधीक्षक दतिया को इस आशय का आवेदन दिया गया था। जिसमें खसरा नंबर 474 रकबा 0.52 हेक्टेयर भूमि मौजा सिजोरा में 1/2 भाग का भूमिस्वामी मातादीन पुत्र उदिया रावत तथा 1/2 भाग का मालिक कल्ला उर्फ कल्यान पुत्र रामकिशुन रावत निवासी सिजौरा थे।

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कल्ला उर्फ कल्यान रावत ने अपने हिस्से की भूमि करीब 0.26 आरे 25 सितंबर 2013 को लालाराम यादव पुत्र सुगर सिंह निवासी सिजौरा को रजिस्टर्ड विक्रय पत्र द्वारा बेच दी थी।

जिसका नामांतरण भी राजस्व अभिलेख में हो चुका था। किसी कारण से हल्का पटवारी ने कम्प्यूटर शाखा में इसका अमल नहीं करा पाया था। जिससे कंप्यूटर में कल्ला का नाम इंद्राज होने से उसने इस बात का नाजायज लाभ उठा लिया।

कल्ला ने बेईमानी व छलपूर्वक यह जानते हुए कि वह उक्त आराजी का मालिक नहीं है, कूटरचना कर अपने को उक्त आराजी का फिर से मालिक बताकर इस बार जमीन का रजिस्टर्ड विक्रय चंद्रभान पुत्र धीरजसिंह रावत को 20 अप्रैल 2016 को 2 लाख 47 हजार रुपये में कर दिया। चंद्रभान जब हल्का पटवारी के पास नामांतरण के लिए गया तो उसे इस धोखाधड़ी के बारे में पूरी जानकारी मिली। 

दस्तावेजों की कराई गई जांच : उक्त आवेदन की जांच की गई। जिसमें अारोपित का अपराध सामने आया। पंजीयन प्रमाण पत्र जप्त किए गए। साथ ही आरोपित के नमूना हस्ताक्षर लेकर प्रकरण में जप्तशुदा दस्तावेजों को परीक्षण के लिए प्रभारी अंगुल चिंह दतिया एवं राजकीय परीक्षक प्रलेख भोपाल की ओर भेजे गए।

विवेचना उपरांत अपराध पाए जाने पर अभियोग पत्र न्यायालय में प्रस्तुत किया गया। अपर लोक अभियोजक के प्रस्तुत तर्कों से सहमत होकर आरोपित काे दोषी मानते हुए दंडादेश दिया गया।

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