किसानो को दिवाली का तोफा : गेहूं, चना, जौ समेत 6 रबी फसलों की बढ़ाई गई MSP, सरसों में 400 रुपये प्रति क्विंटल का इजाफा

नई दिल्ली  : मंत्रिमंडलीय समिति ने विपणन सीजन 2023-24 के लिए सभी अनिवार्य रबी फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में वृद्धि को मंजूरी दे दी है। सरकार ने रबी फसलों के विपणन सीजन 2023-24 के लिए एमएसपी में वृद्धि की है, ताकि उत्पादकों को उनकी उपज के लिए लाभकारी मूल्य सुनिश्चित किया जा सके।

मसूर के लिए 500/- रुपये प्रति क्विंटल और इसके बाद सफेद सरसों व सरसों के लिए 400/- रुपये प्रति क्विंटल एमएसपी में पूर्ण रूप से उच्चतम वृद्धि को मंजूरी दी गई है। कुसुंभ के लिए 209/- रुपये प्रति क्विंटल की वृद्धि को मंजूरी दी गई है। गेहूं, चना और जौ के लिए क्रमशः 110 रुपये प्रति क्विंटल और 100 रुपये प्रति क्विंटल की वृद्धि को मंजूरी दी गई है।

विपणन सीजन 2023-24 के लिए सभी रबी फसलों के लिए एमएसपी  (रुपये प्रति क्विंटल)

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क्र.सं फसलें एमएसपी

आरएमएस

2022-23

एमएसपी

आरएमएस

2023-24

आरएमएस उत्पादन की लागत* 2023-24 एमएसपी में वृद्धि (पूर्ण) लागत से अधिक लाभ (प्रतिशत में)
1 गेहूं 2015 2125 1065 110 100
2 जौ 1635 1735 1082 100 60
3 चना 5230 5335 3206 105 66
4 मसूर 5500 6000 3239 500 85
5 सफेद सरसों और सरसों 5050 5450 2670 400 104
6 कुसुंभ 5441 5650 3765 209 50

*लागत के संदर्भ में किराए पर नियुक्त किए गए श्रमिक के लिए खर्च की गई लागत के साथ सभी भुगतान की गई लागतें शामिल होती हैं

इनमें श्रम, बुल़ॉक श्रम/मशीन श्रम, भूमि में पट्टे के लिए भुगतान किया गया किराया, बीज, उर्वरक, खाद, सिंचाई शुल्क, उपकरणों और कृषि भवनों पर मूल्यह्रास, कार्यशील पूंजी पर ब्याज, डीजल/बिजली के संचालन के लिए सामग्री के उपयोग पर किए गए खर्च पंप सेट आदि, विविध, पारिवारिक श्रम का खर्च और इम्प्यूटिट मूल्य भी शामिल है।

विपणन सीजन 2023-24 के लिए रबी फसलों के लिए एमएसपी में वृद्धि केंद्रीय बजट 2018-19 की घोषणा के अनुरूप है, जिसमें एमएसपी को अखिल भारतीय भारित औसत उत्पादन लागत के 1.5 गुना के स्तर पर तय किया गया है, जिसका लक्ष्य किसानों के लिए उचित पारिश्रमिक तय करना है।

सफेद सरसों और सरसों के लिए अधिकतम रिटर्न की दर 104 प्रतिशत है, इसके बाद गेहूं के लिए 100 प्रतिशत, मसूर के लिए 85 प्रतिशत है; चने के लिए 66 प्रतिशत; जौ के लिए 60 प्रतिशत; और कुसुंभ के लिए 50 प्रतिशत है।      

वर्ष 2014-15 से तिलहन और दलहन के उत्पादन को बढ़ाने पर नए सिरे से ध्यान केंद्रित किया गया है। इन प्रयासों के अच्छे परिणाम मिले हैं। तिलहन उत्पादन 2014-15 में 27.51 मिलियन टन से बढ़कर 2021-22 में 37.70 मिलियन टन (चौथा अग्रिम अनुमान) हो गया है। दलहन उत्पादन में भी इसी तरह की वृद्धि की प्रवृत्ति दर्ज की गई है। बीज मिनीकिट कार्यक्रम किसानों के खेतों में बीजों की नई किस्मों को पेश करने का एक प्रमुख साधन है और बीज प्रतिस्थापन दर को बढ़ाने में सहायक है।

2014-15 के बाद से दलहन और तिलहन की उत्पादकता में काफी वृद्धि हुई है। दलहन के मामले में उत्पादकता 728 किग्रा/हेक्टेयर (2014-15) से बढ़ाकर 892 किग्रा/हेक्टेयर हो गई है (चौथा अग्रिम अनुमान, 2021-22) अर्थात इसमें 22.53 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। इसी प्रकार तिलहन फसलों में उत्पादकता 1075 किग्रा/हेक्टेयर (2014-15) से बढ़ाकर 1292 किग्रा/हेक्टेयर (चौथा अग्रिम अनुमान, 2021-22) कर दी गई है।

सरकार की प्राथमिकता तिलहन और दलहन के उत्पादन को बढ़ाते हुए आत्मनिर्भर भारत के उद्देश्य को पूरा करना है। तैयार की गई रणनीतियां क्षेत्र के विस्तार, उच्च उपज वाली किस्मों (एचवाईवी), एमएसपी समर्थन और खरीद के माध्यम से उत्पादन बढ़ाने के लिए हैं।

सरकार देश में कृषि क्षेत्र में प्रौद्योगिकी और नवाचार के उपयोग के माध्यम से स्मार्ट खेती के तरीकों को अपनाने को भी बढ़ावा दे रही है। सरकार एक डिजिटल कृषि मिशन (डीएएम) लागू कर रही है, जिसमें भारत कृषि का डिजिटल इकोसिस्टम (आईडीईए), किसान डेटाबेस, एकीकृत किसान सेवा इंटरफेस (यूएफएसआई), नई तकनीक पर राज्यों को वित्त पोषण (एनईजीपीए), महालनोबिस राष्ट्रीय फसल पूर्वानुमान केंद्र (एमएनसीएफसी), मृदा स्वास्थ्य, उर्वरता और प्रोफाइल मैपिंग में सुधार करना शामिल है।

एनईजीपीए कार्यक्रम के तहत उभरती प्रौद्योगिकियों जैसे आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और मशीन लर्निंग (एआई/एमएल), इंटरनेट ऑफ थिंग्स (आईओटी), ब्लॉक चेन आदि का उपयोग करके डिजिटल कृषि परियोजनाओं के लिए राज्य सरकारों को वित्त पोषण दिया जाता है। ड्रोन प्रौद्योगिकियों को अपनाने का कार्य किया जा रहा है। स्मार्ट खेती को बढ़ावा देने के लिए, सरकार कृषि क्षेत्र में स्टार्टअप को भी बढ़ावा देती है और कृषि-उद्यमियों का पोषण करती है।

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