नई दिल्ली : राष्ट्रपति भवन में आयोजित ‘कला उत्सव 2025’ के दौरान झारखंड की पारंपरिक ‘सोहराई’ कला को विशेष स्थान मिला। ‘आर्टिस्ट्स इन रेजिडेंस’ कार्यक्रम के दूसरे संस्करण में यह कला केंद्रबिंदु रही, जिसे देशभर से आए दर्शकों ने सराहा। इस दस दिवसीय कार्यक्रम में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु की उपस्थिति ने आयोजन को विशेष गरिमा प्रदान की।
राष्ट्रपति ने कलाकारों से की मुलाकात : राष्ट्रपति ने कला प्रदर्शनी का अवलोकन किया और कलाकारों से संवाद करते हुए उनकी रचनात्मकता की सराहना की। उन्होंने कहा, “ये कलाकृतियाँ भारत की आत्मा को दर्शाती हैं – प्रकृति से जुड़ाव, पौराणिक कथाएं और सामुदायिक जीवन इनमें सजीव रूप से दिखता है।”
कार्यक्रम के दौरान इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र (आईजीएनसीए) की ओर से उन्हें पारंपरिक साड़ी भेंट की गई।
सोहराई कला की विशेषता : सोहराई कला झारखंड के हज़ारीबाग और आस-पास के क्षेत्रों में रहने वाले आदिवासी समुदायों की पारंपरिक भित्ति चित्रकला है, जिसे मुख्यतः महिलाएं मिट्टी की दीवारों पर बनाती हैं। यह चित्रकला फसल कटाई और त्योहारों के समय बनाई जाती है और इसमें प्राकृतिक रंगों व बांस से बने ब्रशों का उपयोग होता है।
इस कला में पशु, पौधे, ज्यामितीय आकृतियाँ और स्थानीय प्रतीकों को दर्शाया जाता है, जो कृषि आधारित जीवन और आदिवासी मान्यताओं से जुड़े होते हैं।
10 स्थानीय कलाकारों ने लिया भाग : इस कार्यक्रम में हज़ारीबाग की दस महिला कलाकारों ने भाग लिया, जिनमें रुदन देवी, अनीता देवी, सीता कुमारी, मालो देवी, सजवा देवी, पार्वती देवी, आशा देवी, कदमी देवी, मोहिनी देवी और रीना देवी शामिल थीं। इन सभी ने अपनी पारंपरिक शैली में सोहराई चित्रकला को लाइव प्रदर्शित किया।
कलाकार सुश्री मालो देवी और सुश्री सजवा देवी ने कहा, “यह हमारे लिए बहुत सम्मान की बात है कि हमने राष्ट्रपति भवन में अपनी कला का प्रदर्शन किया। यह अनुभव अविस्मरणीय रहेगा।”
IGNCA की भूमिका और समर्थन : कार्यक्रम का समन्वय रांची स्थित IGNCA के क्षेत्रीय केंद्र द्वारा किया गया। स्थानीय परियोजना सहायकों — बोलो कुमारी उरांव, प्रभात लिंडा और डॉ. हिमांशु शेखर — ने कलाकारों के चयन और कार्यक्रम के संचालन में अहम भूमिका निभाई। उनके प्रयासों से झारखंड के सुदूर गांवों से कलाकारों को राष्ट्रीय मंच तक पहुँचने का अवसर मिला।
आदिवासी कला को मिला राष्ट्रीय सम्मान : ‘कला उत्सव 2025’ के आयोजन से पहले गोदना, पारली और मिथिला जैसी लोक कलाओं को राष्ट्रीय पहचान प्राप्त थी, लेकिन अब सोहराई को भी उसी पंक्ति में स्थापित किया गया है। यह कार्यक्रम झारखंड की सांस्कृतिक विरासत को न केवल मंच पर लाने में सफल रहा, बल्कि इसे भविष्य में संरक्षण और संवर्धन की दिशा में भी सशक्त आधार प्रदान करता है।