jitin prasad news : उत्तर प्रदेश के चुनावी मैदान में असर डाल सकते हैं कांग्रेस के बेअसर जितिन, जानिए कैसे?

 Jitin prasad news लखनऊ : भाजपा का दामन थामते ही जितिन भी कांग्रेस की नजर में ‘प्रभावहीन’ हो गए। तर्क है कि इतने प्रभावशाली होते तो दो लोकसभा और एक विधानसभा चुनाव क्यों हारते? हालांकि पार्टी के तजुर्बेदार नेता मानते हैं कि जिन जितिन को कांग्रेस ने यूपी के ‘गोदाम’ में कैद करना चाहा, वह भाजपा के साथ मैदान में ठीकठाक असर दिखा सकते हैं।

इसके अलावा रुहेलखंड क्षेत्र के बड़े सियासी परिवार से नाता टूटना पार्टी की अंतर्कलह का संदेश जनता में देगा और सवर्ण, खासकर ब्राह्मणों को कांग्रेस से जोड़ने की मुहिम को भी तगड़ा झटका लग सकता है।

उनके पार्टी से मोहभंग के कयास तभी से जोर पकड़ने लगे थे, जब उन्होंने 23 असंतुष्ट नेताओं के समूह में शामिल होकर राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी को पार्टी में सुधार की सलाह दी थी। शाहजहांपुर और धौरहरा लोकसभा सीट से दो बार सांसद रहे जितिन प्रसाद मनमोहन सिंह सरकार में केंद्रीय राज्यमंत्री रहे।

वह 2014 व 2019 का लोकसभा और 2017 का विधानसभा चुनाव भले ही हार गए हों, लेकिन शाहजहांपुर, बरेली, पीलीभीत, लखीमपुर खीरी, हरदोई आदि क्षेत्रों में वह कांग्रेस के चेहरे थे। वजह यह कि उनके पिता जितेंद्र प्रसाद कांग्रेस के शीर्ष नेताओं में शामिल रहे। बीते डेढ़ वर्ष से वह ब्राह्मण चेतना परिषद बनाकर प्रदेश भर का दौरा कर रहे थे। ब्राह्मणों को भाजपा के खिलाफ और कांग्रेस के समर्थन में एकजुट करने का प्रयास कर रहे थे।

21 नेताओं ने छोड़ी कांग्रेस : 2019 में प्रियंका ने यूपी की कमान बतौर प्रभारी संभाली। 450 सदस्यों की पुरानी प्रदेश कमेटी को भंग कर नए सिरे से गठन किया। अध्यक्ष सहित 49 पदाधिकारियों की कमेटी बनाई, जिसमें सारे नए चेहरे थे।

पुराने नेता हाशिए पर आ गए। दो बार विस्तार देकर संख्या करीब सौ कर दी गई। कुछ पुराने नेताओं को समायोजित करने का भी प्रयास किया। उनमें से अब तक 19 पदाधिकारी पार्टी छोड़ चुके हैं। इसके अलावा उन्नाव की जानी-मानी नेता रहीं पूर्व सांसद अन्नू टंडन सपा में शामिल हो चुकी हैं और अब पूर्व केंद्रीय मंत्री जितिन प्रसाद भी भाजपा मंें शामिल हो गए।

तराई क्षेत्र में भाजपा को मिलेगी मजबूती : भाजपा को ब्राह्मण विरोधी साबित करने की मुहिम को हवा दे रही कांग्रेस को जितिन प्रसाद के इस कदम तगड़ा झटका लगा है।

वहीं, भाजपा नेतृत्व ने विधानसभा आम चुनाव की तैयारियों को गति देने से पूर्व अपने इरादे भी जाहिर कर दिए हैं कि सत्ता में वापसी के लिए हर दांव चलेंगे और अन्य दलों के दमदार नेताओं से भी गुरेज न किया जाएगा।

खासकर उन क्षेत्रों में, जहां भाजपा को अपनी स्थिति और मजबूत करने की जरूरत है। पूर्व केंद्रीय मंत्री जितिन प्रसाद की एंट्री को इसी रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है। इससे बहराइच से लेकर लखीमपुर खीरी, शाहजहांपुर व पीलीभीत से लेकर बरेली तक तराई बेल्ट में कांग्रेस की जड़ें खुदेंगी और भाजपा को ताकत मिलेगी।

विधान परिषद में भेजने की चर्चा : भाजपा में शामिल होने के साथ ही जितिन प्रसाद को विधानपरिषद में नामित सदस्य के तौर पर भेजने व कैबिनेट में स्थान देने की चर्चा भी जोरों पर है। माना जा रहा है कि जितिन को रीता बहुगुणा जोशी की तरह अहमियत दी जाएगी। जितिन के जरिये ब्राह्मणों के अलावा युवाओं को जोड़ने में भी मदद मिलेगी। 

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