नई दिल्ली : वर्ष 2014 के बाद कांग्रेस के सबसे अधिक सांसदों, विधायकों व उम्मीदवारों ने दूसरे दलों का दामन थामा, जबकि भाजपा सर्वाधिक फायदे में रही।
इस अवधि में सबसे ज्यादा नेता भाजपा से जुड़े हैं। चुनावी राजनीति पर नजर रखने वाली संस्था एसोसिएशन फार डेमोक्रेटिक रिफार्म्स (एडीआर) ने उम्मीदवारों के चुनावी शपथ पत्रों का विश्लेषण किया।
इसमें पता चला कि वर्ष 2014-21 के दौरान कुल 222 उम्मीदवार कांग्रेस छोड़कर दूसरी पार्टियों में शामिल हो गए। इसी दौरान 177 सांसदों व विधायकों ने भी उसका साथ छोड़ दिया। इस अवधि में भाजपा से 111 उम्मीदवार व 33 सांसद-विधायक अलग हुए, लेकिन दूसरे दलों के 253 उम्मीदवारों और 173 सांसदों व विधायकों ने पार्टी का दामन थामा। इन वर्षों में कई दलों के 115 उम्मीदवार व 61 सांसद-विधायक कांग्रेस में शामिल हुए।
एडीआर की रिपोर्ट के अनुसार, सात साल में कुल 1,133 उम्मीदवारों व 500 सांसदों-विधायकों ने पार्टियां बदलीं और चुनाव लड़े। कांग्रेस के बाद बसपा दूसरी ऐसी पार्टी रही, जिसके सबसे अधिक उम्मीदवारों और सांसदों-विधायकों ने पाला बदला। 153 उम्मीदवार व 20 सांसद-विधायक बसपा से अलग होकर दूसरी पार्टियों में चले गए।
हालांकि, इस दौरान 65 उम्मीदवार व 12 सांसद-विधायक बसपा में शामिल भी हुए। सपा से 60 उम्मीदवार व 18 सांसद-विधायक अलग हुए तथा 29 उम्मीदवार व 13 सांसद-विधायक उसके साथ जुड़े। इसी तरह कुल 31 उम्मीदवारों और 26 सांसदों एवं विधायकों ने तृणमूल कांग्रेस का साथ छोड़ा, जबकि 23 उम्मीदवार और 31 सांसद-विधायक उसमें शामिल हुए।

जदयू के 59 उम्मीदवारों व 12 सांसदों-विधायकों ने पाला बदला, जबकि 23 उम्मीदवार और 12 विधायक-सांसद उसमें शामिल हुए। राजद के 20 उम्मीदवारों व 11 सांसदों-विधायको ने पार्टी से किनारा किया, जबकि 15 उम्मीदवार और छह सांसद-विधायक दूसरे दलों से राजद में आए। राकांपा ने 52 उम्मीदवार और 25 विधायक-सांसद खोए तथा 41 उम्मीदवार एवं आठ सांसद-विधायक उसमें शामिल हुए।
गत सात वर्षों में भाकपा को उसके 13 उम्मीदवारों और दो सांसदों-विधायकों ने अलविदा कह दिया तथा पांच उम्मीदवार उसमें शामिल हुए। माकपा से उसके 13 उम्मीदवार और छह सांसद-विधायक अलग हुए, जबकि सिर्फ एक उम्मीदवार पार्टी में शामिल हुआ।