राजनीति में विरोधी हो सकते हैं, दुश्मन नहीं” — उपराष्ट्रपति धनखड़, कहा: “मेरे पर कोई दबाव नहीं है; ना मैं किसी पर दबाव डालता हूँ, ना दबाव में आता हूँ”

जयपुर : जयपुर में आयोजित ‘स्नेह मिलन समारोह’ में भारत के उपराष्ट्रपति  जगदीप धनखड़ ने लोकतांत्रिक मूल्यों, संवैधानिक मर्यादाओं और राजनीति में संवाद की आवश्यकता पर विस्तार से अपने विचार रखे। उन्होंने स्पष्ट किया कि वे किसी भी प्रकार के दबाव में कार्य नहीं करते और न ही किसी पर दबाव डालते हैं।

अपने संबोधन की शुरुआत में उन्होंने राजस्थान की राजनीति से जुड़े एक सार्वजनिक बयान का उल्लेख करते हुए कहा कि यह चिंता का विषय नहीं है, क्योंकि वह न तो स्वयं दबाव में कार्य करते हैं और न ही किसी को दबाव में लाते हैं। उपराष्ट्रपति ने कहा कि सार्वजनिक जीवन में पारदर्शिता और स्वतंत्रता अत्यंत आवश्यक है, और इन मूल्यों से कोई समझौता नहीं होना चाहिए।

कार्यक्रम के दौरान उन्होंने लोकतंत्र में राजनीति के तापमान को लेकर चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि आज की राजनीति में तनाव और टकराव की प्रवृत्ति बढ़ रही है, जो देश के लोकतांत्रिक स्वास्थ्य के लिए अनुकूल नहीं है। उनका कहना था कि सत्ता और विपक्ष की भूमिका बदलती रहती है, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं होना चाहिए कि दलों के बीच शत्रुता हो।

राष्ट्रीय एकता के संदर्भ में उपराष्ट्रपति ने कहा कि जब प्रतिनिधि विदेश यात्रा पर जाते हैं, तो वह केवल भारत का प्रतिनिधित्व करते हैं—न कि किसी दल विशेष का। उन्होंने यह भी कहा कि विदेशों में भारत के प्रतिनिधित्व को एकजुट स्वर में प्रदर्शित किया जाना चाहिए, जिससे यह संदेश जाए कि भारत में राष्ट्रहित सर्वोपरि है।

अपने भाषण में उन्होंने राज्यपालों की संवैधानिक भूमिका की भी चर्चा की। उन्होंने कहा कि जब राज्य में सरकार और केंद्र में सरकार भिन्न होती है, तो राज्यपालों को अनावश्यक आलोचना का सामना करना पड़ता है। उन्होंने इस प्रवृत्ति को अनुचित बताया और कहा कि इसमें सुधार की आवश्यकता है।

उपराष्ट्रपति ने राजनीतिक संवाद की गुणवत्ता पर भी टिप्पणी की। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र में असहमति का अधिकार है, लेकिन असहमति का स्थान टकराव नहीं होना चाहिए। उन्होंने संविधान सभा के कार्यों का उदाहरण देते हुए कहा कि वहां गहन मतभेदों के बावजूद संवाद और सहमति के माध्यम से रास्ता निकाला गया, अशांति नहीं हुई।

किसानों से जुड़े मुद्दों पर भी उन्होंने बात की। उन्होंने कहा कि सरकार द्वारा किसानों को दी जाने वाली सब्सिडी यदि सीधे उनके खातों में पहुंचे, तो इससे अधिक प्रभाव दिखाई देगा। उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि खाद्यान्न सब्सिडी की राशि सीधे किसानों को देने से प्राकृतिक और जैविक खेती को प्रोत्साहन मिल सकता है।

भारत की अर्थव्यवस्था पर टिप्पणी करते हुए उन्होंने बताया कि भारत अब दुनिया की शीर्ष चार अर्थव्यवस्थाओं में शामिल हो चुका है। उन्होंने कहा कि विगत दशक में भारत की आर्थिक प्रगति ने वैश्विक स्तर पर नया स्थान प्राप्त किया है और यह तुलना अब केवल घरेलू नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर की जानी चाहिए।

संसद और विधानमंडलों में आचरण को लेकर उन्होंने कहा कि इन संस्थानों को सर्वोच्च आचरण स्थापित करना होगा। यदि जनता को लगता है कि लोकतंत्र के मंदिर में उद्देश्यपूर्ण कार्य नहीं हो रहा है, तो वे विकल्प तलाश सकते हैं। उन्होंने विधायिकाओं से आत्ममंथन की आवश्यकता जताई।

कार्यक्रम के अंत में उन्होंने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के संतुलित प्रयोग पर बल दिया। उन्होंने कहा कि जब अभिव्यक्ति दूसरों की बात सुनने की इच्छा खो देती है, तो वह अपनी सार्थकता भी खो देती है। लोकतंत्र में वाद-विवाद और संवाद दोनों आवश्यक हैं, जिससे बहस की गुणवत्ता बनी रह सके।

इस कार्यक्रम में राजस्थान के राज्यपाल श्री हरिभाऊ बागड़े, विधानसभा अध्यक्ष श्री वासुदेव देवनानी, नेता प्रतिपक्ष श्री टीकाराम जूली, तथा राजस्थान प्रगतिशील मंच के पदाधिकारी उपस्थित रहे।

Share this with Your friends :

Share on whatsapp
Share on facebook
Share on twitter