भोपाल। राजधानी में रविवार को कुशाभाऊ ठाकरे सभागार में राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के क्रियान्वयन, चुनौतियों और संभावनाओं पर एक दिवसीय कार्यशाला आयोजित हुई। कार्यक्रम की शुरुआत राष्ट्रगान के साथ हुई, जिसमें राज्यपाल मंगुभाई पटेल, मुख्यमंत्री मोहन यादव और केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान सहित उच्च शिक्षा और स्कूल शिक्षा विभाग से जुड़े मंत्री, प्राध्यापक और शिक्षा विशेषज्ञ मौजूद रहे।
कार्यक्रम में वक्ताओं ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति को भारत के भविष्य की दृष्टि से एक महत्त्वपूर्ण कदम बताते हुए कहा कि नीति का उद्देश्य केवल शैक्षणिक सुधार नहीं, बल्कि शिक्षा क्षेत्र में समग्र परिवर्तन है। कार्यशाला में नीति के क्रियान्वयन से जुड़े विभिन्न प्रावधानों, तकनीकी बदलावों और व्यवहारिक चुनौतियों पर भी विस्तार से चर्चा की गई।
उच्च शिक्षा में शोध, नवाचार और उद्योग–शिक्षा साझेदारी प्रमुख मुद्दा : राज्यपाल मंगुभाई पटेल ने कहा कि नई नीति उच्च शिक्षा को अधिक लचीला और प्रतिस्पर्धी बनाने का अवसर देती है। उन्होंने अनुसंधान आधारित शिक्षण, डिजिटल अवसंरचना, गुणवत्तापूर्ण संकाय और उद्योग–शिक्षा सहभागिता को मजबूत करने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा कि बच्चों को मातृभाषा में अनुभव आधारित शिक्षा देना महत्वपूर्ण है और प्राथमिक स्तर पर प्रभावी शिक्षक-प्रशिक्षण सुनिश्चित करना समय की आवश्यकता है।
छात्रों को भविष्य की तकनीकों के लिए तैयार करने पर बल : कार्यक्रम के दौरान वक्ताओं ने क्वांटम कम्प्यूटिंग, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और डिजिटल साक्षरता जैसे क्षेत्रों में नए कौशल के विकास को आवश्यक बताया। वक्ताओं ने कहा कि आने वाले वर्षों में शिक्षा व्यवस्था को तकनीक आधारित और नवाचार केंद्रित बनाना होगा, ताकि विद्यार्थी वैश्विक प्रतिस्पर्धा में प्रभावी रूप से शामिल हो सकें।
शिक्षा संस्थानों के सामाजिक दायित्व और स्थानीय आवश्यकताओं पर चर्चा : कार्यशाला में यह भी रेखांकित किया गया कि नीति के सफल क्रियान्वयन के लिए शिक्षा संस्थानों को समाज के प्रति उत्तरदायी भूमिका निभानी होगी। शोध को स्थानीय आवश्यकताओं और क्षेत्रीय समस्याओं से जोड़ने की आवश्यकता पर बल दिया गया, ताकि शिक्षा का वास्तविक लाभ समाज तक पहुँच सके।


