नई दिल्ली : भारत की नवीकरणीय ऊर्जा यात्रा अब एक नए, रूपांतरणकारी चरण में प्रवेश कर रही है — जहाँ ध्यान केवल उत्पादन क्षमता बढ़ाने पर नहीं, बल्कि प्रणालियों की मजबूती, विश्वसनीयता और सतत एकीकरण पर है नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (एमएनआरई) ने कहा है कि भारत की ऊर्जा यात्रा अब गति से गुणवत्ता की ओर बढ़ रही है। बीते एक दशक में भारत की नवीकरणीय क्षमता 35 गीगावाट से बढ़कर 197 गीगावाट से अधिक हो चुकी है, और अब लक्ष्य है — 2030 तक 500 गीगावाट गैर-जीवाश्म ऊर्जा हासिल करना।
मात्रा से गुणवत्ता की ओर बदलाव : मंत्रालय के अनुसार अब फोकस तेज़ विस्तार से हटकर संतुलित प्रणाली निर्माण पर केंद्रित है। इसमें ग्रिड एकीकरण, ऊर्जा भंडारण, बाजार सुधार और संकरण (हाइब्रिड) परियोजनाएँ प्रमुख भूमिका निभा रही हैं। भारत वर्तमान में हर वर्ष 15-25 गीगावाट नई नवीकरणीय क्षमता जोड़ रहा है — जो वैश्विक स्तर पर सबसे तेज़ दरों में से एक है।
नीतिगत सुधार और नई दिशा : पिछले दो वर्षों में सरकार ने ऊर्जा भंडारण, हाइब्रिड और आरटीसी परियोजनाओं को प्राथमिकता दी है। घरेलू विनिर्माण को प्रोत्साहन देने के लिए उत्पादन-संबद्ध प्रोत्साहन (PLI) योजना, शुल्क अधिरोपण और एएलएमएम जैसे प्रावधान लागू किए गए हैं, ताकि आयात निर्भरता घटाई जा सके। ट्रांसमिशन ढाँचे को सुदृढ़ करने हेतु ₹2.4 लाख करोड़ की योजना तैयार की गई है, जिससे 200 गीगावाट से अधिक नवीकरणीय क्षमता को जोड़ा जा सकेगा।
निवेश और भविष्य की रूपरेखा : भारत स्वच्छ ऊर्जा निवेश का प्रमुख केंद्र बना हुआ है। देश में ग्रीन हाइड्रोजन मिशन, पीएम कुसुम, पीएम सूर्याघर और हरित ऊर्जा कॉरिडोर चरण III जैसी पहलें अगले दशक के ऊर्जा स्वरूप को आकार दे रही हैं। राजस्थान, गुजरात और कर्नाटक में हाइब्रिड व आरटीसी परियोजनाएँ तेजी से आगे बढ़ रही हैं, जबकि अपतटीय पवन एवं पंपयुक्त जल भंडारण परियोजनाएँ अगले चरण की नींव रख रही हैं।
विकसित भारत की ओर : भारत की नवीकरणीय क्रांति अब केवल गति नहीं बल्कि कार्यनीतिक स्थिरता पर आधारित है। एमएनआरई के अनुसार — यह परिवर्तन संस्थागत मजबूती और दीर्घकालिक ऊर्जा आत्मनिर्भरता की दिशा में एक निर्णायक कदम है। आने वाले वर्षों में भारत का ऊर्जा ढाँचा अधिक लचीला, गुणवत्तापूर्ण और प्रणाली-एकीकृत बनेगा।


