जयपुर: पंजाब कांग्रेस के कलह के बहाने राजस्थान के पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट भी सक्रिय हो गए हैं।उन्होंने पिछले 11 माह में सुलह कमेटी की एक भी बैठक नहीं होने और उनके द्वारा उठाए गए मुद्दों का समाधान नहीं होने पर पार्टी आलाकमान के समक्ष नाराजगी जताई है ।
गौरतलब है कि पिछले दिनों जब पायलट खेमे के नेताओं ने कांग्रेस से बगावत कर दी थी तो पार्टी आलाकमान के कहने पर ही वह माने थे। सचिन पायलट ने आलाकमान के समक्ष कई मुद्दे उठाए थे।
इस दौरान आलाकमान ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से सुलह सहित अन्य मुद्दों के सुलझाने के लिए कमेटी बनाई थी, लेकिन पायलट का कहना है कि कमेटी की एक भी बैठक नहीं हुई है। ऐसे में पंजाब कांग्रेस का कलह देख पायलट फिर सक्रिय हो गए हैं।
जानकारी के मुताबिक पायलट ने तीन दिन पहले प्रदेश प्रभारी अजय माकन से कहा है कि पंजाब में तो कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी के निर्देश पर विवाद के समाधान की कोशिश होने लगी है, लेकिन राजस्थान के मामले में आलाकमान ध्यान नहीं दे रहा है।
पायलट और उनके समर्थक विधायकों ने अब अपने सब्र का बांध टूटने की बात आलाकमान तक पहुंचाई है। इस मामले में जब पायलट से बात की गई तो उन्होंने कहा कि कार्यकर्ताओं को उनका हक मिलना चाहिए।
जानकारी के अनुसार पायलट खेमे के विधायकों ने मंगलवार को अनौपचारिक रूप से बैठक कर आगे की रणनीति तय की है। सोलंकी ने जोर-शोर से उठाया अनुसूचित जाति का मुद्दा उधर, पायलट के विश्वस्त विधायक वेदप्रकाश सोलंकी ने मंगलवार को एक बार फिर अशोक गहलोत सरकार पर निशाना साधा है।
उन्होंने कहा कि कांग्रेस को अनुसूचित जाति और अल्पसंख्यक केवल चुनाव के वक्त याद आते हैं। अनुसूचित जाति और अल्पसंख्यकों के वोटों से कांग्रेस चुनाव जीतती रही है, लेकिन सरकार में इन वर्गाें की ही उपेक्षा हो रही है ।
एक बातचीत में सोलंकी ने कहा कि जहां अनुसूचित जाति, जनजाति और अल्पसंख्यकों के वोट नहीं मिलते हैं, वहां कांग्रेस के नेता चुनाव लड़कर देख लें, क्या चुनाव परिणाम रहता है, उनको पता चल जाएगा। वहां निश्चित ही हार होगी । उन्होंने कहा कि वोट हमारे और मलाई दूसरे खा रहे हैं, ऐसा नहीं चलेगा। यह दुर्भाग्य की बात है कि 10 माह से केबिनेट में एक भी अनुसूचित जाति वर्ग से मंत्री नहीं है, हम जैसे अनुसूचित जाति वर्ग के विधायक किस के सामने दुखड़ा रोएं।
विपक्ष में रहते हुए जिन लोगों ने लाठियां खाईं, तत्कालीन भाजपा सरकार के खिलाफ आंदोलन किए, वही आज परेशान हैं और पांच साल तक एसी में बैठने वाले अब सत्ता का मजा ले रहे हैं । कार्यकर्ता देख रहे हैं और सेवानिवृत्त अधिकारियों को नियुक्तियां दी जा रही हैं।