लखनऊ : सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश बार काउंसिल को फटकार लगाई है. यह फटकार फर्जी दावे पेश कर मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण और श्रमिक मुआवजा अधिनियम के तहत बीमा कंपनियों को करोड़ों रुपये का नुकसान पहुंचाने वाले अधिवक्ताओं के खिलाफ कार्रवाई नहीं करने पर लगाई गई है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अधिवक्ताओं द्वारा फर्जी दावा याचिकाएं दाखिल करने के गंभीर आरोपों के बावजूद यूपी बार काउंसिल द्वारा उन्हें अपना पक्ष पेश करने का निर्देश नहीं देना बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण हैे.
पीठ ने कहा, ‘ऐसे में राज्य की बार काउंसिल का यह कर्तव्य है कि वह मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण और श्रमिक मुआवजा अधिनियम के तहत फर्जी दावे दायर करने वाले अधिवक्ताओं के खिलाफ कार्रवाई करे।’ शीर्ष अदालत ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के सात अक्टूबर, 2015 के आदेश के अनुपालन में गठित एक विशेष जांच दल (एसआइटी) को 15 नवंबर या उससे पहले सीलबंद लिफाफे में जांच के संबंध में रिपोर्ट जमा करने का भी निर्देश दिया। शीर्ष अदालत ने यूपी सरकार की ओर से दायर एक पूरक हलफनामे पर गौर किया जिसमें कहा गया था कि इलाहाबाद हाई कोर्ट के सात अक्टूबर, 2015 के आदेश के अनुपालन में एक विशेष जांच दल (एसआइटी) का गठन किया गया है। पीठ ने इस तथ्य का भी संज्ञान लिया कि विशेष जांच दल को 1,376 संदिग्ध दावों के मामले मिले हैं।
इनमें से अभी तक 246 ऐसे संदिग्ध मामलों की जांच पूरी हो गई है और पहली नजर में 166 आरोपितों के खिलाफ संज्ञेय अपराध का पता चला है जिनमें याचिकाकर्ता, अधिवक्ता, पुलिसकर्मी, डाक्टर, बीमा कर्मचारी, वाहन मालिक, ड्राइवर आदि शामिल हैं और इस संबंध में कुल 83 आपराधिक मामले दर्ज किए गए हैं।
पीठ ने इस तथ्य का भी जिक्र किया कि हलफनामे के अनुसार संदिग्ध दावों के शेष मामलों में अभी जांच चल रही है। पीठ ने कहा कि यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि विशेष जांच दल ने भी इस मामले में तत्परता से कार्रवाई नहीं की और अभी तक जांच पूरी नहीं की है। पीठ ने राज्य सरकार और विशेष जांच दल को दर्ज की गई शिकायतों या पूरी हो गई जांचों को आरोपितों के नामों के साथ बेहतर हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया। हलफनामे में उन नामों का भी विवरण शामिल करना होगा जिनके खिलाफ आपराधिक शिकायतें दर्ज की गई हैं और जिनमें आरोप पत्र दाखिल किया जा चुका है।