वीवंडर फाउंडेशन के प्रयास रंग लाए, कृत्रिम घोंसले लगाकर गौरैया को दिया आशियाना, घर-आंगन में लौटने लगी चहचहाहट

वाराणसी । चीं-चीं, चूं-चूं करती चिड़िया, फुर्र-फुर्र उड़ जाती चिड़िया, फुदक-फुदक कर गाना गाती, रोज सबेरे हमें जगाती..हम सबने बचपन में यह कविता कंठस्थ की होगी। लेकिन नतीजा यह रहा कि कंक्रीट में बदलते शहरों में लोगों के आंगन से चिड़ियों की चहचहाहट ही गायब हो गई थी। इस सबके बीच वीवंडर फाउंडेशन ने बीड़ा उठाया और फाउंडेशन के पिछले 3 साल के प्रयास से गौरैया फिर से घर -आंगन में वापस नजर आने लगी है।

रोज सबेरे गूंजने वाली गौरैया की चहचहाट को वापस लाने के लिए कोशिशें शुरू हुईं और लोगों का समर्थन मिला। शहर में कृत्रिम घोंसले लगाए गए। लोग छतों और चहारदीवारी पर दाना-पानी रखने लगे। कोशिशें रंग लाईं और रूठी गौरैया वापस लौटने लगी। अब जरूरत इस बात की है कि इन कोशिशों को जारी रखा जाए। इसीलिए हर वर्ष 20 मार्च को विश्व गौरैया दिवस मनाया जाता है।

वीवंडर फाउंडेशन द्वारा बनाए गए आशियानों में बैठी गौरैया

वीवंडर फाउंडेशन टीम का यही कहना है कि कंक्रीट में बदलते शहरों में गौरैया के प्राकृतिक वासस्थल खत्म होते जा रहे हैं। न अब आंगन रहे और न ही रोशनदान। हरियाली भी सिमटती जा रही है। ऐसे में कृत्रिम घोंसले लगाकर गौरैया को आसरा देने की मुहिम बीते कई सालों से की जा रही है। इसका परिणाम भी काफी अच्छा रहा है। इन घोंसलों को चिड़िया ने अपना आशियाना बना लिया है। अब जरूरत इस बात की है कि अब देश के अलग अलग जगहों पर गौरैया पार्क विकसित किए जाएं, जिससे गौरैया संरक्षण किया जा सके।

फाउंडेशन द्वारा लोगों को वितरित किए गए घोंसले

गौरैया ही एक ऐसी चिड़िया है जो घरों में परिवारजनों के साथ रहती है। हमारे नजदीक तक आती है, अंडे देती है और परिवार बढ़ाती है। यह किसी को नुकसान नहीं पहुंचाती और यही वजह है कि इसका कलरव घर में खुशियां लाता है। गौरैया संरक्षण की दिशा में बच्चों का रुझान बहुत ही सराहनीय रहा है। लेकिन अब समय आ गया है कि बच्चे ही नहीं सभी आयुवर्ग के लोगों को आगे आना होगा और गौरैया को बचाने के लिए तेजी से कार्य करना होगा। बढ़ता प्रदूषण, आवास में कमी, पेड़ों की घटती संख्या और सब्जी व अनाज में कीटनाशकों का इस्तेमाल गौरैया की संख्या में कमी के बड़े कारण हैं।

वीवंडर फाउंडेशन द्वारा गौरैया संरक्षण के लिए की जा रही पहल

वीवंडर फाउंडेशन की नींव 14 दिसंबर 2017 को रखी गई थी। वीवंडर फाउंडेशन संस्था की नींव इस सोच के साथ शुरू की गई थी कि उसके सदस्य अपने व्यस्ततम निजी जिंदगी में से मात्र एक घंटे का समय निकाल कर समाज की कुछ समस्याओं का उद्धार करने का प्रयास कर सकेंगे, संस्था का कोई भी सदस्य कहीं भी रहे, कभी भी समाज के लिए एक घंटे का समय निकाल सके। हालांकि संस्था उस सोच को लेकर आज परस्पर 3 वर्षों से आगे बढ़ रही है, संस्था के सभी सदस्यों ने अब इस सोच को देशव्यापी बनाने का प्रयास कर रहे हैं। संस्था का उद्देश्य वातावरण में पक्षियों और उनके आवास का संरक्षण करना है।

फाउंडेशन की टीम घोंसले तैयार करती हुई

पिछले 3 वर्षों से फाउंडेशन गौरैया संरक्षण के लिए काम कर रहा है। लगभग 150 से अधिक अलग-अलग स्कूलों और कॉलेजों में जागरूकता कार्यक्रम सम्पन्न कराए गए। और लकड़ी से बने लगभग 8 हजार से अधिक पक्षियों के घोंसले वितरित किए गए। पर्यावरण संरक्षण के लिए विभिन्न स्थानों पर 16 हजार से अधिक पौधारोपण किया गया।

संस्था को गौरैया संरक्षण के लिए राष्ट्रीय गौरव पुरस्कार 2019 और विभिन्न संगठन से 10 अन्य पुरस्कारों से भी नवाजा गया है। लॉकडाउन के दौरान वीवंडर फाउंडेशन ने ऑनलाइन वर्कशॉप का आयोजन किया। संस्था ने ऑनलाइन प्लेटफॉर्म के माध्यम से घोंसले बनाने का प्रशिक्षण दिया। इस प्रशिक्षण के दौरान कई हजार लोग जुड़े। कोरोना के दौरान स्कूल और कॉलेज बंद होने की वजह से संस्था ने जीवा नामक पत्रिका निकालकर गौरैया पक्षी बचाओ अभियान चलाया। यह पत्रिका ऑनलाइन और सोशल मीडिया के माध्यम से देश के लगभग 10 लाख लोगों तक पहुंचाई गई। हाल ही में दूरदर्शन द्वारा गौरैया बचाओ अभियान पर एक डॉक्यूमेंट्री भी सूट की गई। जिसका प्रसारण 20 मार्च को गौरैया दिवस के अवसर पर राष्ट्रीय चैनल दूरदर्शन पर किया जाएगा।

वीवंडर फाउंडेशन के चेयरमैन गोपाल कुमार

वीवंडर फाउंडेशन के चेयरमैन गोपाल कुमार ने बताया कि गौरैया संरक्षण की दिशा में फाउंडेशन लगातार सक्रिय है। उन्होंने इस दिशा में आम लोगों से भी अपेक्षा की है कि वह अपने घर में या घर के आसपास एक घोंसला जरूर रखें और एक पौधों भी लगाए। अपने साथ-साथ अन्य साथियों को भी ऐसा करने के लिए प्रेरित करें। ऐसा कर पर्यवारण संरक्षण के मुहिम में अपनी सहभगिता दर्ज कराएं।

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