नई दिल्ली । नए संसद भवन निर्माण को लेकर देश की राजनीति गर्म है। इसे रोकने के चौतरफा प्रयास हो रहे हैं। लेकिन शायद इन्हें अहसास नहीं कि भव्य दिखने वाला संसद भवन अपनी आयु से लगभग 25-30 वर्ष ज्यादा जी चुका है। अगले पांच साल के बाद होने वाले परिसीमन और उसके कारण सांसदों की बढ़ने वाली संख्या को बैठाने के लिए स्थान की बात फिलहाल भूली भी जाए तो भी यह भवन भार ढोने के लिए तैयार नहीं है। वर्ष 2012 में ही सीपीडब्लूडी के चीफ इंजीनियर ने बता दिया था कि अब सेस्मिक जोन-4 में आ चुके दिल्ली में भूकंप संसद भवन के लिए सुरक्षित नहीं है।
यह बात सार्वजनिक है कि 2012 में तत्कालीन लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार ने नया संसद भवन बनाने का प्रस्ताव दिया था। उनके पत्र में भी भवन के पुराना और असुरक्षित होने की बात थी। साथ ही भविष्य में सांसदों की बढ़ने वाली संख्या के मद्देनजर पर्याप्त जगह की जरूरत बताई गई थी। उस पत्र के एक पखवाड़े बाद ही 20 जुलाई को 2012 को सीपीडब्लूडी के चीफ इंजीनियर ने प्रस्ताव का समर्थन करते हुए स्पष्ट किया था कि 2001 के भुज भूकंप के बाद ही सीपीडब्लूडी ने संसद भवन पर पड़ने वाले प्रभाव के अध्ययन के लिए एक कमेटी बनाई थी। यह पाया गया था कि ‘लोड बीयरिंग मैसोनरी स्ट्रक्चर’ में बने भवन सामान्यतया 60-65 साल के लिए होते हैं।
दरअसल उस समय की जरूरतों के मुताबिक बने संसद भवन में लिटेंल का उपयोग नहीं है। फ्लोर हो या छतें उसे स्टील से बांधा नहीं गया है। गुंबद खासतौर से खतरनाक हैं। जाहिर है कि 1927 में बना संसद भवन अपनी सामान्य उम्र से लगभग 30 साल ज्यादा लोगों के भार ढो चुका है। नई जरूरतों के अनुसार संसद के अंदर कई बदलाव किए गए हैं, एसी आदि की व्यवस्था की गई है। इसके कारण ढांचा और भी कमजोर हो चुका है। चीफ इंजीनियर की रिपोर्ट में ही दूसरे देशों और खासकर आस्ट्रेलिया का उदाहरण देते हुए कहा गया कि वहां भी संसद भवन 1927 में बना था लेकिन 60 साल के बाद नया भवन बनाया गया था। लिहाजा भारत में भी इसकी बहुत जरूरत है।
यह और बात है तब फैसलों में सुस्ती के कारण कोई अंतिम फैसला नहीं हो सका था। संसद परिसर में निर्माण कार्य को लंबे अरसे से देखने वालों की मानी जाए तो मीरा कुमार के वक्त कोई डिजाइन तैयार नहीं हो पाया था और इसीलिए उसके निर्माण में होने वाले खर्च का ठोस अनुमान भी नहीं हो पाया। लेकिन उसके 12 वर्ष पहले बनी लाइब्रेरी बिलिं्डग को ही आधार माना जाए जाए तो भी नया संसद भवन तुलनात्मक रूप से कम कीमत में तैयार होगा। 65,000 वर्ग मीटर में बनने वाले नए संसद भवन की अनुमानित लागत 900 करोड़ रुपये के आसपास है। जबकि इससे लगभग आधे क्षेत्र में बनी लाइब्रेरी में आज से 21 साल पहले लगभग 200 करोड़ खर्च हुए थे।
ऐसी स्थिति में यह मानने में गुरेज नहीं होना चाहिए कि राजनीतिक कारणों से भले ही नए संसद भवन का विरोध हो रहा हो। लेकिन सुरक्षा और संवैधानिक आधार पर पर्दे के पीछे सभी दल इससे सहमत ही दिखेंगे। खुद संसद के अंदर कई बार भवन की सुरक्षा का सवाल उठ चुका है। वहीं सांसदों की संख्या पर 2026 तक की रोक है। फिलहाल सांसदों की जो संख्या तय है वह 1971 जनगणना के आधार पर 1976 में तय हुआ था। तब देश में लगभग 30 करोड़ मतदाता थे, जो अब तीन गुना हो चुके हैं। यानी 2026 के बाद की स्थिति में बड़ी संख्या में सांसदों के बैठने के लिए भी जगह चाहिए होगी और नए भवन को अगले सौ साल के लिहाज से भी तैयार करना होगा। जाहिर है सुरक्षा और संविधान दोनों के लिए नए भवन की जरूरत है।