सच आप तक : गांधीजी की वो 5 गलतियां, जिनका खामियाज़ा भारत आज भी भुगत रहा है!

सच आप तक : महात्मा गांधी जिन्हें भारत का राष्ट्रपिता भी कहा जाता है, उन्होंने पूरे विश्व को अहिंसा और शांति का संदेश दिया, पर कई लेखक और विचारक आज भी मानते हैं कि गलतियां उनसे भी हुईं। जिनका खामियाज़ा देश आज भी भुगत रहा है, लोगों के मन में गांधी जी की छवि पूर्णता साफ नहीं है। कुछ लोगों का मत है कि गांधीजी एक अच्छे इंसान थे और कुछ लोगों का मत इसके विपरीत है। चलिए जानते हैं कि गांधी जी की वह कौन सी 5 गलती है जिसका खामियाजा भारत भुगत रहा है।

1. भगत सिंह की फांसी : कई लेखकों का मत है कि गांधीजी चाहते तो ये फांसी रोक सकते थे पर यह माना जाता है कि गांधीजी ने भगत सिंह के केस पर कभी गंभीरता दिखाई ही नहीं। हालांकि भारत के वायसरॉय को लिखे पत्र में गांधी जी ने लिखा था “Execution is an irretrievable act. If you think there is the slightest chance of error of judgment, I would urge you to suspend for further review an act that is beyond recall” (मृत्युदण्ड एक असाध्य क्रिया है, यदि इसमें कहीं से भी कोई भी गुंजाईश है तो मैं आपसे विनती करता हूँ की कृपया इस फैसले को पुनः समीक्षा तक निलंबित किया जाएं)।

यदि गांधीजी चाहते तो फांसी के खिलाफ आंदोलन कर सकते थे या फिर उन लोगों का साथ दे सकते थे, जो भगत सिंह और उनके साथियों के फांसी के विरोध में शांतिपूर्ण आंदोलन कर रहे थे, पर उन्होंने सिर्फ पत्र लिखने और विनती करने के अलावा कुछ नहीं किया। कुछ लोगों का यह भी मानना है कि गांधीजी ने आजादी के श्रेय को देखते हुए उस समय उन्होंने भगत सिंह के मामले पर जोर नहीं दिया।

“प्रसिद्ध लेखक NOORANI अपनी किताब “ट्रायल ऑफ़ भगत सिंह(TRAIL OF BHAGAT SINGH)” के चौदहवें अध्याय में लिखते हैं “गांधी के प्रयास आधे अधूरे थे, उन्होंने कभी दिल से प्रयास किया ही नहीं। जब जेल में भगत सिंह और उनके साथी भूख हड़ताल पर थे, गांधीजी ने उनसे मिलने या उन्हें देखने तक की जहमत नहीं उठाई, और तो और लार्ड इरविन को लिखे पत्र अपने मैं गांधी जी ने फांसी के फैसले को रद्द करने के बजाय उसे सिर्फ कुछ समय तक टालने का आग्रह किया था।’’

2. अंग्रेजों के सहयोग का है आरोप : गोडसे ने भी अपनी पुस्तक में लिखा है कि 1906 में गांधी जी ने ज़ुलु साम्राज्य के खिलाफ हुए युद्ध में अंग्रेजो को सहयोग दिया। उनका ये मानना था कि इस युद्ध में ब्रिटिश को सहयोग देकर वो उनका भरोसा जीत लेंगे। उन्होंने भारतीय सैनिकों को ब्रिटिश सेना में भर्ती करने में ईस्ट इंडिया कंपनी को सहयोग दिया।

देश आजाद कराने के लिए उन पर कभी पूर्णतः समर्पित न रहने के भी आरोप लगे। इतिहास गवाह है की आज़ादी मांगने से नहीं मिलती, छीननी पड़ती है, इसकी कीमत देशभक्तों को अपने खून से चुकानी पड़ती है जो गांधीजी ने नहीं बल्कि उन लोगोँ चुकाई जिन्हें आज भारत के इतिहास के पन्नों पर पर्याप्त जगह तक नसीब न हुई।

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आंदोलन के बाद 19 लोगों को मृत्युदंड की सजा सुनाई गई। 6 की मृत्यु पुलिस कस्टडी में हुई एवं 110 लोगो को आजीवन कारावास की सजा मिली और ये सारी गिरफ्तारियां और फैसले सिर्फ संदेह और झूठे गवाहों के आधार पर हुए। क्या ये देशवासियों के साथ अन्याय नहीं था, क्या फांसी देना हिंसक नहीं था पर उनके आदर्श इन सब से कही बढ़ कर थे। उन्होंने आंदोलन वापस लेकर अंग्रेजो को द्वितीय विश्वयुद्ध में सहयोग का आश्वाशन दिया।

3. भारत का विभाजन : गांधीजी की ये सबसे बड़ी भूल थी जिसे आज पूरा भारत भुगत रहा है। द्वितीय विश्वयुद्ध से 1942 के आंदोलन को अगर वापस न लिया गया होता तो न ही मुस्लिम लीग का निर्माण होता और न देश की मांग होती। 1942 में आंदोलन ने ये साफ़ कर दिया था की भारतीय अब और नहीं सहेंगे। इसे भांपते हुए इंग्लिश शासन ने अपना अंतिम दांव खेला, उन्होंने कहा कि विश्व युद्ध में भारत हमारा सहयोग करे और हम बदले में उसे आज़ाद कर देंगे।

गांधी जी ने अपनी आदत के अनुसार अंग्रेजों को विश्वयुद्ध की समाप्ति तक का वक्त दिया। जबकि आज़ादी हमें उससे पहले ही मिल सकती थी। इस बीच मुस्लिम लीग काफी तेज़ी से बढ़ा और उन्होंने अंग्रेजो से संधि की, कि हम आपको सैनिक देंगे आप हमारी अलग राष्ट्र की मांग पर विचार करें। जाते-जाते देश को विभाजित करने का सुनहरा मौका अंग्रेज कैसे छोड़ सकते थे।

उस समय कांग्रेस के नेताओं का कहना था विभाजन टाला नहीं जा सकता और उन्होंने विभाजन पर सहमति दे दी पर यदि गांधीजी अपनी बात पर अड़ जाते तो भी इस विभाजन को रोका जा सकता था। ऐसी ही समस्या अमेरिका की आज़ादी के वक्त अब्राहम लिंकन के सामने थी पर देश के टुकड़े करने के बजाए उन्होंने एक लम्बी और हिंसक लड़ाई लड़ी, तब जाकर अमेरिका आज यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ़ अमेरिका बना।

गांधीजी को अहिंसा की पड़ी थी, पर विभाजन होने के बाद भी हमने जानें गवाई हैं। चाहे बांग्लादेश का निर्माण हो या फिर ३ बार हुए भारत पाक युद्ध, हिंसा जारी है। गांधीजी ये बात बार बार भूलते रहे कि आजादी की कीमत चुकानी पड़ती है। वह इंतज़ार करते रहे कि अंग्रेज उन्हें भारत की आज़ादी थाली में परोस कर देंगे। परोसने से पहले ही अंग्रेजों ने इसके टुकड़े टुकड़े कर दिए। गलत समय पर गलत लोगों के साथ आदर्शों का अनुसरण गांधीजी के साथ सबको महंगा पड़ गया।

4. गांधीजी की विवादित सेक्स लाइफ : डॉ.एलआर. बाली ने अपनी पुस्तक ‘रंगीला गांधी’ और ‘क्या गांधी महात्मा थे’ में उल्लेख किया है कि अपने ब्रम्हचर्य के प्रयोग के लिए गांधीजी अपने कमरे में कुंवारी लड़कियों के साथ नग्न सोते थे। (इस बात का पूर्णता दावा हम नहीं करते)। ऐसा भी बताया जाता है कि सरदार पटेल ने इस बारे में गांधीजी को पत्र लिख कर उनके इस प्रयोग को भयंकर भूल बताते हुए इसे रोकने को कहा था।

पुस्तक में लेखक ने कहा है कि ब्रह्मचर्य के ये प्रयोग भी गांधी जी की उसी हठधर्मिता और अतिवाद का परिणाम थे। जहां वे अपने को अपनी नजर में विजयी घोषित देखने के लिए स्त्री का वस्तु की भांति प्रयोग करते रहे। पुस्तक के मुताबिक साफ़ शब्दों में कहें तो वो युवतियों के साथ नग्न होकर सोने का परीक्षण कर अपनी ब्रह्मचर्य के लक्ष्य की पूर्णता को जांचना व परखना चाहते थे।

5. गांधीजी की हठधर्मिता : कई विद्वानों ने ऐसे अारोप भी लगाए कि गांधीजी हठी थे, उनकी ‘माय वे ऑर हाईवे’ वाले सिद्धांत ने काफी क्षति पहुंचाई। गांधीजी ने काफी बड़े और प्रभावी आंदोलन किए पर आदर्शो एवं सिद्धांतों के नाम पर उन्हें खुद ही ख़त्म कर दिए। मोटे तौर पर गांधी जी की नीति ये थी- “मुझे फर्क नहीं पड़ता कि आप कितने बड़े नेता हैं या आपने कितने ही अच्छे काम किये हैं, जब तक आप मेरे विचारों से सहमत नहीं, आपको मेरा समर्थन नहीं मिलेगा।”

उदाहरण के तौर पर 1927 में गांधीजी ने घोषणा की थी कि मेरे बाद सी. राजगोपालाचारी को पार्टी की कमान सौंप दी जाएं, पर 1942 में क्रिप्स कमीशन पर वैचारिक मतभेदों के बाद गांधीजी ने उन्हें कांग्रेस से निकाल दिया और ये कहाकि राजगोपालाचारी नहीं बल्कि नेहरू मेरे उत्तराधिकारी होंगे। सिर्फ अपने आदर्शो को थोपने की वजह से उन्होंने नेताजी को पार्टी छोड़ने पर मजबूर कर दिया। सैद्धांतिक मतभेदों की वजह से बहुतों को गांधी जी के कोपभाजन का शिकार बनना पड़ा, ऐसा कई राजनैतिक विद्वानों का कहना है। यह सब गांधीजी की एक अहिंसक तानाशाही छवि को दर्शाता है।

इन सारी ग़लतियो के बावजूद गांधीजी का भारत की स्वतंत्रता में एक अहम योगदान रहा। जिसे हम नज़रअंदाज कतई नहीं कर सकते। यह था आज का सच आप तक का लेख। यदि आपको ये लेख अच्छा लगा तो कृपया अपने मित्रों के साथ शेयर करें। अगले रविवार को एक नए लेख के साथ इतिहास के उन प्रश्नों का जवाब ढूंढने की कोशिश करेंगे, जो आज भी आम जनता तक नहीं पहुंच सके।

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