अभय बताते हैं कि ‘पोवेवा लोक गायन के जरिए शिवाजी महाराज के युद्ध कौशल का यशोगान भी किया जाता है।’ यह वीर रस के गायन और लेखन का ही एक प्रकार है, इसमें ऐतिहासिक घटनाओं को सामने रखते हुए रचना की रचना की जाती है। इस गीत प्रकार की रचना करने वाले रचनाकारों को शायरी ने कहा है। ‘
बहुत कम लोगों को पता है कि वीर सावरकर भी एक शराबी थे, उन्होंने चाफेकर बंधुओं के बलिदान की घटना पर मराठी में ही एक पोवाड़ा की रचना की थी।
वीर सावरकर से जुड़े किस्से के बारे में अभय कहते हैं कि ’22 जून, 1897 को आधी रात का वक्त था। पुणे के सरकारीकरण हाउस से तत्कालीन स्पेशल प्लेग कमेटी के अध्यक्ष वाल्टर चार्ल्स रैंड अपने तांगे पर सवार हो कर जा रहे हैं। इसी दौरान दामोदर, बालकृष्ण और वासुदेव – चाफेकर बंधुओं ने गणेश झुंड रोड से गुजर रहे इस तांगे पर गोली चला दी। गोली चार्ल्स रैंड को लगी। रंड एक ऐसी अफसर थी, जिसने पुणे के प्लेग पीड़ितों को राहत देने के बजाय उनका अपमान किया था और इस कारण से ही चचकर मुसलमानों के अंदर बदला लेने की आग भड़क गई थी।
रंड को गोली मारने के तुरंत बाद दामोदर को गिरफ्तार कर जेल भेजा गया और बाद में उन्हें मौत की सज़ा सुनाई गई। इन तीनों क्रांतिकारियों को हुई फांसी की सजा के बाद 16 साल की उम्र में वीर सावरकर ने मां भवानी के देश के लिए सब कुछ न्यौछावर करने की शपथ ली थी। सावरकर ने चपेकर बंधुओं के समान साहस पर पोवाड़ा की रचना की थी। ‘